चन्द्र मोहन कर्ण लिखित मैथिली कविता 'गामक आमगाछी'


बीतल बसन्त ग्रीष्मक पदार्पण
गाछी गमकैत आम 
मजर बनल जे टिकुला लुधकल 
सेहो पैघ भेल आम 

चलू गाम जओ आम खाएक अछि
गाछी बनल मचान 
डारि सं लटकल हिड़ला झूलब 
पेंगा मारब तानि

सूति मचान पर गाछी जोगब 
खाएब आमक कुच्चा 
गर्मीक छुट्टी गाछी बीतत 
पाएब आनन्द सुच्चा
 
लीची आब उसरि गेल अछि 
पाकल बिज्जू गाछक आम 
बम्बइ, टिपिया, सेनुरिया, चौरिया 
महग बिकाबए दाम 

खसल पानि त' पाकल सभ तरि
आब जे पाकए कलमी 
जरदालू-गोपी संग पाकए 
गुलाबखास ओ फैजली 

पाकै अछि कलकतिया-मालदह 
आओर दशहरी पाकल 
पोखर मोहार पर कटहर संग 
जामुन-पनिआला पाकल
 
अमोट-अंचार-चटनी-खटमिट्ठी 
घर-घर लागल सचार 
भार-सनेस ई सभ वस्तु बुझू 
अछि मिथिला व्यवहार
 
हुसि गेलहुं जओ एहि बेर त'
पछिताएब भरि साल 
फेर आस अगिले ग्रीष्मक बुझू
विधि लिखने जओ भाल

पड़ितहि मोन गामक अबैत अछि 
दृश्य मनोरम सुन्दर 
बाध-बोन चहुं दिसि हरीतिमा 
हर्षित तन-मन-अन्तर 

पोखरि-खत्ता भरल-पुरल सभ 
माछ-मखानक खेती 
बाड़ी उपजए तीमन-तरकारी 
आर तिलकोरक लत्ती 

कम-सं-कम ग्रीष्मक अवसर पर 
समय बिताबी गाम 
प्रकृति केर कोरा बैसि खाएब 
विविध प्रकारक आम  

चन्द्र मोहन कर्ण
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