दूर्वाक्षत मंत्र देखल जाए:
"ॐ आब्रह्मन ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौsतिव्याधि महारथी जायताम दोघ्री धेनुर्वोढाsनड्वानाशुः सप्ति पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवाsस्ययजमानस्य वीरोजायाताम निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोनः कल्पताम् मंत्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोsस्तु मित्राणामुदस्तव।"
दूर्वाक्षत मंत्र (Durvakshat Mantra) केर अर्थ:
हे भगवान! अपन देश मे ज्ञानक प्रकाश सं युक्त विद्यार्थी उत्पन्न होथि. शत्रुक नाश केनिहार सैनिक उत्पन्न होथि. देशक गाय खूब दूध दिअए, बड़द भार वहन करबा मे सक्षम होअए, घोड़ा द्रुतगामी होअए. स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबा मे योग्य होथि, युवक सब ओजपूर्ण वक्तव्य राखि सकथि आ नेतृत्व क्षमता सं युक्त होथि. अपन देश मे जखन जरूरति हो, बरखा होअए आ जड़ी-बूटी केर कोनो कमी नै रहए. एहि तरहें हमरा सबहक कल्याण होअए. शत्रु केर बुद्धिक नाश होअए आ मित्रक उदय होअए.
दूर्वाक्षत देबाक विधि:
मुख्यतः ई कल्याणक कामना आ आशीष देबाक प्रक्रिया अछि, बर-कनिया अथवा बरुआ कें 5 वा अधिक गोट जेठ विवाहित पुरुष माथ पर गमछा अथवा पाग राखि हाथ मे दूभि-धान-अक्षत ल' मंत्र पढ़ैत छथि. मंत्र पढ़लाक बाद तीन बेर 'दीर्घायु भवः' कहैत दूभि-धान-अक्षत शरीर पर आशीर्वाद स्वरूप छिटि देइत छथि. विधि काल कनिया संग रहने तीन बेर 'सौभाग्यवती भवः' सेहो कहल जाइत अछि.
नोट : एतय जे फोटो देल गेल अछि से गूगल सर्च सं आभार सहित लेल गेल अछि.
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