उपमा तोहर देब ककरा सम


[मातृभाषा मैथिली हेतु समर्पित व्यक्तित्व शरदिन्दु चौधरी केर देहावसान सँ साहित्यिक लोकनि मे एकटा शोक एकटा हताशा व्याप्त अछि. हुनक व्यक्तित्व ओ कृतित्व केर चर्चा सँ सोशल मीडिया पाटल अछि, ओतहि हुनक अनुपस्थिति सँ मैथिली भाषा-साहित्य मे जे रिक्तता आएल अछि, से भरब असंभव सन लगैत देखल जा रहल अछि. साहित्यिक राज कुमार मिश्र मैथिली केर एहि दिवंगत सिपाही केर विभिन्न योगदान पर इजोत देलनि अछि.]

लेखक शरदिन्दु

मैथिली साहित्य मे शरदिन्दु चौधरी (जन्मः 7 अक्टूबर 1956 - मृत्युः 11 जून 2025) मूलतः एक व्यंग्यकार रूप मे स्थापित छलाह. समाज मे व्याप्त पाखंड-प्रपंच कें ओ लेखनक लक्ष्य बनौलनि. बड़ अजगुत देखल, जँ हम जनितहुँ, करिया कक्काक कोरामीन, गोबर गणेश, बात-बात मे बात इत्यादि हुनक प्रकाशित पोथी थिक. 

कतोक मैथिली साहित्यकार आ संस्थाक लोक जे हुनक साहित्यिक व्यंग्यवाण सँ पीड़ित छलाह से हुनका सँ जीवनभरि कन्नी कटैत रहलाह. ई हुनक व्यंग्य लेखनक सफलते कही. वैयक्तिक व्यवहार मे  ओ खांटी मैथिलीसेवीक प्रति फूल सन कोमल आ छद्म मैथिलीसेवीक प्रति बज्र सन कठोर बनि जाथि.

पत्रकार शरदिन्दु

मैथिली लेखक होएब एक बात थिक आ मैथिली लेखक संग पत्रकार होएब विशिष्ट बात थिक. मैथिलीक पत्रकारिता हुनक सोनित मे छल. पिता प्रख्यात साहित्यकार स्वनामधन्य सुधांशु शेखर चौधरी मिथिला मिहिर पत्रिकाक संपादक रहथिन. हुनका लोक संपादकजी नामे जनै छलनि. एखन त' मैथिलीक देखनुक आ हिलसगर दैनिक पत्रो बहराइत अछि जे अन्यान्य भाषाक पत्र सँ उन्नैस नै बीसे होएत मुदा आइ सँ पचीस बरख पूर्व साहित्य संगे साहित्येतर विषय कें कभर करएबला मैथिली मे कोनो एकटा पत्र-पत्रिका नै छल. तकर पूर्ति कएने रहथि यएह शरदिन्दु चौधरी! 

हिनके संपादकत्व मे फरबरी 2000 मे मैथिलीक द्वैमासिक पत्रिका 'समय-साल' बहराएब आरंभ भेल जे 13-14 साल धरि प्रकाशित होइत रहल. दाम हिसाबे ई बेस मोटगर-गतगर होइत छल. एहि मे क्षेत्रीय, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्वक विविध आलेख सभ प्रकाशित होइत छल. कथा-कविता आ पोथीक पाठकीय मन्तव्य सेहो छपए मुदा से अनुपातहि मे. समय-सालक जनप्रियता एहने छल जे रेलवे बुक स्टॉल आ बस स्टैंड पर सहजहिं उपलब्ध होइत छल. दिल्ली मे सैकड़ो पत्रिका बिकाइत छल. शरदिन्दु चौधरी पटना सँ प्रकाशित हिन्दी दैनिक आर्यावर्त आ मैथिली साप्ताहिक मिथिला मिहिर मे सेहो काज कएने रहथि.

प्रकाशक शरदिन्दु

मैथिली पोथीक प्रकाशन सदा सं कठिनाह रहल अछि. लेखक अपन पोथी कहुना छापिए लैत अछि. मुदा वितरण बेर मे थस्स लए लैत अछि. छपलाहा पोथीक कोन गति होइत छैक से कहबाक प्रयोजन नै, सभ बुझिते होएब. किछु हित-अपेक्षित मे बिलहाइत अछि आ तकर बाद घरक कोनो कोन-कोनटा आ मचान पर रखाइत अछि. प्रकाशन अर्थ थिक पोथी कें छापि ओकरा सम्यक वितरण करब, ओकरा प्रकाश मे आनब. पोथी छापि ओकरा पुनः बाकस-झप्पा मे बंद कए देब प्रकाशनक उद्देश्य कें पूरा नै करैत अछि. एही उद्देश्य सँ शरदिन्दु चौधरी वर्ष 1999 मे 'शेखर प्रकाशन' केर स्थापना कएलनि जे मैथिली भाषा-साहित्य लेल समर्पित छल. हुनका अपन प्रेस छलनि. पटना रेलवे जंक्शन लग पोथीक स्टॉल छलनि जतय ओ स्वयं बैसथि. 

देश मे मैथिलीभाषीक कतहु जुटान संभावित होइ 'शेखर प्रकाशन' हाजिर भेटैत छल बिनु नफा-नोकसान केर परबाहि कएने. कएक बेर त' जाइ-अबैक खर्चो नै उपर होइक शेखर प्रकाशन कें. विद्यापति समारोह आ पुस्तक मेला सभ मे शेखर प्रकाशनक उपस्थिति सँ मैथिलीभाषीक हृदय पुष्ट होइत छल. मैथिली पोथी वितरणक एहि यज्ञ मे शिव कुमारजी अदौकाल सं एक याज्ञिक रहलाह अछि. मैथिली पोथी नै भेटैत छै तकर शिकाइत पर 'मिथिमीडिया' (मैथिलीक डिजिटल पत्रिका) सं गप करैत एक बेर शरदिन्दु चौधरी कहने रहथि- "ई लांछन जे हमरासभ पर अछि जे मैथिली पोथी नै भेटैत अछि त' एहि बजार मे हम तैं बैसल छी जे ओ लांछन सँ कम सँ कम दूर रही हम सभ."  आ' ई काज शरदिन्दु चौधरी बिनु हानि-लाभ कें करैत रहलाह. 

एहि मैथिली प्रकाशन आ वितरण मे हुनक कतेक टाका बूड़ल तेकर अत्ता नै. दुर्लभ मैथिली पोथीक खोज हुनके लग सं आरंभ होइत छल आ हुनके लग खतम भ' जाइ छल. मैथिली हुनक वृत्ति आ मैथिलीए हुनक साधना छल. अनेको लोक कें ओ मदति कएलनि जे आइ पैघ लेखक -विचारक, शिक्षक आ सरकारी अधिकारी छथि.

हुनक विरोधिओ ई गछैत अछि जे अर्थ आ समांगक दृष्टि सं लचरल (एकरो कारण मैथिलीए छल जाहि लेल ओ हाड़ गलबैत रहलाह ) रहितहुँ शरदिन्दु चौधरी अपन जीवन काल मे मैथिली लेखन, मैथिली पत्रकारिता आ मैथिली प्रकाशन क्षेत्र मे से कीर्तिमान स्थापित कएलनि अछि जे आबएबला समय मे असंख्य मैथिलीसेवी हेतु प्रेरक होएत!
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