युवा कवि पंकज कुमार केर 3 गोट मैथिली कविता


1. आइडेंटिटी क्राइसिस

एखनहुँ सत्य यएह थिक जे
अहाँकेँ चिन्हैत अछि
अहीँ सन दू-चारि गोट
अनेरुआ अनरनेबा सभ
तेँ राता-राती स्टार बनबाक ब्योंत मे
हो-हो केनाय शुरू क' दैत छी
नापाक देसक जयघोष करय बाली
अलबोक सभहक समर्थनमे
वस्तुतः
अहाँकेँ ई बुझबाक चाही
जे आमक फल खयबाक लेल
ओकरे जड़िमे देमय पड़ैत छैक खाद-पानि
फराक सँ लगाओल बंसबिट्टी
क' दैत छैक समूल नाश
ओकर मंदिर-मसजिदक मुद्दाक सोझा
अहाँक ई काज अछि
हरिवासेक बिहान भने
कोनो लटुआयल-पटुआयल
भूखायल मनुक्खक लेल
अनोनहा भुजियाक जोगार जकाँ अनसोहाँत
पाउज करय दियौक न बरद सभकेँ
अहाँक एहन बौद्धिक प्रयास
पानक पीतक संगहि
आबि जाइत अछि बाहर
तेँ देखार होइत छी अहाँ बेर-बेर
देसक राजधानीक लग्जरी कॉपी हाउसमे
होमय बला चर्चाक बाद
बढ़ि जाइत अछि अहाँक चश्माक नम्बर
बिसरा जाइत अछि
सभटा आन मुद्दा सभ आ
लोकैत रहैत छी अलाय-बलाय
विमर्श करबाक लेल
गरीब-गुरबाहक एहि देसमे
ग्लोबल सिटिजनशिपक थेथरलॉजी केँ
मात्र बकलोली कहल जा सकैछ
जँ बचा सकैत छी
अपन मूल विचारधारा केँ
तँ बचा लिय'
नहि तँ जल्दीए उखरि जायब
बाड़ीक मुरइ जकाँ
किएक खायल भ' गेल अछि आब
अहीँक अप्पन लोक केँ
जे उठाओने छथि अहाँक झंडा
नारा फेकि क' भीड़क
हृदयक परिवर्तन करबाक क्षमता
अहाँ मे नहि अछि
किएक ओहि लेल
बनय पड़ैत छैक बुद्ध।

2. औ जी हमहूँ मजूरे छी

छद्म राष्ट्रवादक
दम्भ भरैत छाती पर बैसिक'
हम करय चाहय छी
अपन कुरहरिसँ एहन प्रहार
जाहिसँ एक्कहि बेरमे उपटि जाइक
नागफेनीक सभटा कांट
बनब' चाहैत छी
सगर समाजक लेल
एकटा उन्मुक्त अकास
जे घेराओल अछि
महाभारतक वीर अभिमन्यु जकाँ
साओनक कारी बादरिसँ
बाहर निकालबाक अछि हमरा
क्लेशक रेहसँ मुँह नमरौने
असोथकित भेल ओहि संविधानकेँ
जे जालमे फंसि क'
सुटकुनिया मारि देने अछि
कोनो बामी माछ जकाँ
नहुं नहुं हम बना लेब
अपन बारीक पटुआसँ
हिस्टीरियाक दवाइ
जे मदति करतैक
एहि देशक हितकेँ
कोठी कान्ह पर राखि
नांगटे नाच करैत
सभ बीमार लोकक इलाजमे
नहि पड़ल हेतैक
बेगरता एडिसनकेँ
तेँ एकटा सामान्य बल्बक
आविष्कार कयलनि
हमरा शीघ्र
बनबय पड़त एकटा एहन बल्ब
जाहिसँ प्रकाशित हेतैक
कारी खकसियाह रातिक संगहि
किंकर्तव्यविमूढ़ भेल आत्मा
मजूरक धर्म
निमाहबाक लेल
लिखबे करब हम
उधेसल खेतकेँ तामि
कोनो कियारीमे
अझुका भूगोल
आ काल्हिक इतिहास

3. चेताओनी

काल्हि अन्हरोखेसँ
अहलदिली पैसल छैक
ओकर मोनमे
तेँ बेर-बेर कय रहलैक अछि प्रयास
एकटा देबाल उठेबाक लेल
सभ किछु विस्मृत कय
इतिहासमे आनय चाहैत छैक बाढ़ि
जाहिमे भसिया देबाक मनसा राखि
अपना भरि कय रहलैक अछि
सभटा ब्योंत
पसरल मुकमुकीमे
जड़ि रहल छैक स्मृति
चहुँ दिस करमान लागल लोक
गदमिसान केने फड़फड़ा रहलैक अछि
अपन झंडा फहरेबाक लेल
उछाहक संगहि
दुरभिसन्धि करबाक कुचक्र
ओकर शोणितमे अछि
तेँ विद्वेषक चोला पहिरने
बेमत हाथी जकाँ
हरबिरड़ो मचौने अछि सगर देसमे
असमानकेँ छुबैत
साम्प्रदायिकताक नमहर मुँहकेँ
भेटि रहल छैक
आइ धरि दाना-पानि
चुप्पे-चाप जोति रहलैक अछि
ओ ओहि खेतकेँ
बाउग कयल जा रहलैक अछि
आक्रोशक बीहनि
देर-सबेर
ई अबस्स अंकुरित होयत
पैघ त्रासदीक रूपमे

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पंकज कुमार नवतुरिया साहित्यिक लोकनिक मध्य प्रमुख नाम छथि. हिनक लेखनी मे एकटा इजोत, एकटा आस देखल जा सकैछ. मूल रूप सं कवि पंकज कविता सहित आलेख, समीक्षा आदि विधा मे सेहो सक्रिय छथि. साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित कार्यक्रम सहित कतेको राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक आयोजन मे मैथिलीक प्रतिनिधित्व क' चुकल छथि. 
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