हमर गामक ओ थाले-थाल सड़क...

हमर गामक ओ थाले-थाल सड़क आब बनि गेल अछि. लोक मे एहि कें ल' खुशी छै. आब लोक सरकार पर डिपेंड रहब छोडि देने अछि. ग्रामीण सभ सड़कक दुनू कात पनिबट सामूहिक प्रयास सं बनेबाक बात क' रहल छलाह. एहि सं पहिने एही सड़क पर एक पुलक फिनिशिंगक काज गामक लोक अपना स्तर पर केलनि आ सड़क चालू भेल जे दशक भरि सं अवरोधित छल. आब त' बसो-गाड़ी ट्राइल परिचालन करैत छै. बाबूजी कहलनि, 4-5 दिन मे सड़क पूरा तैयार भ' जाएत बस-गाडी लेल.

टेलीफोन हमरा गाम मे बड्ड पहिने सं छल आ बिजली सेहो. हमरा जहिया सं अकील भेल अछि ई दुनू सुविधा निर्बाध रहैत छल. कनियो दिक्कत भेलैक कि गामक उपभोक्ता लोकनि अप्पन प्रयास सं ई सेवा चालू करबैत छलाह. ओना आब मोबाइल रहने टेलीफोनक ओतेक बेगरता नै रहलैक आ बिजली लेल सेहो लोक आब सरकार पर डिपेंड नै अछि. दलानक आगू मे सोलर लाइट लागल छै मुदा सड़क अन्हारे छल. हम रातिक आठ बजे पहुंचलहुँ त' पहिने यैह बात पुछलियनि बाबूजी सं. कहलनि जे हेतैक कोनो खरापी, काल्हि धरि जरैत छलैक.

गाम मे टपिते दूटा कुकुर रस्ता रोकलक कि एकटा आठ-नओ बरखक बच्चा दौगि क' आएल आ ओहि दुनू कुकुर कें पुचकारि क' ल' गेल. अनचिन्हार त' छी हम गाम लेल. कनेक काल लेल चिंतितो भेलहुं जे ई दू दिनक गाम यात्रा बीस दिनक भ' सकैछ जओं ई कुकुर काटि लेत. खैर, पहुंचि गेलहुं घर नीके जकां.

गाछी इसकूल पक्का बनि गेल छै...दू महला. आब जल, शौचालय केर नीक बेवस्था छै इसकूल मे. हमरा सभ मास्टर साहेब दस मिनट कहि क' पड़ाइ छलहुं पोखरिक भीड़ दिस आ से झुण्ड मे. 10 मिनट के' कहय घंटो घुमैत छलहुं गाछी-बिरछी. कहियो काल क' घरो पर चलि आबी एही दस मिनटक छुट्टी मे. ओ दस मिनटक आनंद आबक नेना दोसर रूप मे उठबैत होएत.


पोखरिक घाट आब बनि गेलैक अछि मुदा जलकुम्ही ओहिना छै झंपने. स्नान आब साइते लोक करैए जा क'. घाटपरक सुखाएल तुलसी गाछ सैह त' कहि रहल छल. गढ़ पर शिव मंदिर नीक लागल. काली माए आ बाबा माधवानंद कौलाचार्य केर जग्गह पहिने सं बेसी नीक लागल. मुदा गढ़ केर प्राकृतिक सौन्दर्य हहरि रहल छै. एहि स्थानक विशेषता एकर प्राकृतिक सौन्दर्ये छै.

ब्रह्मास्थान मे सेहो पीपड़क गाछक नीचां मंदिर-भवन बनि गेल छै. ओतुक्का पोखरि मे एहि बेर बत्तख दल नै भेटल. मुनाइ बाबाक दलान पर कोनो भोजक तैयारी भ' रहल छल. दलान धरि गेलहुं त' अपने भेंट भेलाह. कहलनि, बोर्डक स्टूडेंट सभ कें फेयरवेल छै आइ. ओहि सरस्वतीक स्थल पर आब बड बेसी साधक अछि. हमरा मोन पडल ओ अखडा चौकी जाहि पर बैसि क' हम सभ 5टा सहपाठी पढैत छलहुं भोर-दुपहरिया. सरस्वती पुत्र आ शिक्षक प्रताप बाबू कें नै पाबि खटकल कनेक. आब ओ नै भेटताह कहियो. एहि सं पछिला बेर ओ दौगिक' आंगन जा चाह लेल कहने छलाह. विद्वान आ सहज व्यक्तित्वक लोक कम छै आब आ आब ओहो नै रहलाह.

आलम कें नमाज पढबाक छलैक आ ओ बाइकक चाभी ल' विदा भेल महजिद दिस. ओकरे संगे हमहूँ चौक पर विदा भ' गेलहुं. आब हमरा ओत्तहि सं कलकत्ता देखा रहल छल आ कंठ भरिया गेल छल. ई सोचि जे ने जानि फेर कहिया...!

— रूपेश त्योंथ


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