लघु प्रेम कथा 'पम्ही'


सिंटू सिरकतर रातिए घूसल से निकलबाक नामे ने ल' रहल छल. क्रिसमस छुट्टी मे गाम आएल छल आ नया साल मना क' फिरबाक पिलान छलै. कड़गर रौद सं शीपाक बुन्न बिला रहल छलै पुआरक टाल पर सं, मुदा सिंटूक निन्न ओहिना जतने छलैक. भाउज चाह नेने एलथिन, तखन जा क' भक फुजलै.

चाहक अंतिम चुस्कीक संग सिरमा लग राखल किछु फोटो पर नजरि गेलैक. ओ एक-एक फोटो पर नजरि फिरा रहल छल कि गुलटन लूडो ल' क' आबि गेल. सिंटू सभ फोटो गुलटन कें थमबैत पुछलक-"तोरा कोन अंटी पसिन छह?"

गु्लटन भभा क' हंसल आ ओहि मे सं एकटा फोटो अलग करैत सिंटूक हाथ मे देइत बाजल-"हमरा ई अंटी चाही...मम्मी कें हम कहि देने छियै."

सिंटू गु्लटनक गाल ऐंठइत पुछलक- "की ख़ास छियै एहि अंटी मे?"

गुलटन अविलंब बाजल- "एहि अंटी कें मोंछो छै."

एतेक मे सिंटूक भाउज गुलटन कें कान पकड़ि भनसा घर दिस ल' गेलीह. सिंटू फोटो दिस एकटक तकैत रहल आ लगले ओकर स्मृतिपटल पर ओ क्षण सजीव भ' उठल जखन ओ रिद्धि कें पहिल बेर देखने छल. रिद्धि कें सेहो पम्ही छलै कने क'. गोर-गोर चाम पर हरियर सन पम्ही जे समयक संग बिला सन गेलै कतहु.

— रूपेश त्योंथ


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