रोजी-रोजगारक माध्यम बनए नाटक : किरण झा

मैथिली धारावाहिक, सिनेमा सहित मंचपर सशक्त अभिनयसं अपन पहिचान बनौनिहार रंगकर्मी 'किरण झा' सं नाटक आ एहिसं जुड़ल विविध विषयपर बातचीत —


मैथिली रंगमंचसँ कहिया आ कोना जुड़लहुँ ?
चूँकि हमर पालन-पोषण आ शिक्षा-दीक्षा कलकत्तेमे भेल अछि तेँ कहि सकैत छी जे नेनपनेसँ हमरा गीत-संगीत, नृत्य आदिक प्रति आकर्षण रहल. मोन पड़ैए-जखन स्कूलमे पढ़ैत रही तँ एकबेर बाबूजीकेँ कहने रहियनि जे हम डान्स सीखय चाहैत छी तँ ओ उत्तर देने रहथि जे अपना सभ समाजमे नाच-गान करब, खासक' ताहूमे महिलाकेँ, लोक नीक नहि मानैत छैक आ फेर हमर ई मनोरथ मनोरथे रहि गेल. मुदा, चूँकि एतुका स्कूल सभमे कल्चरल प्रोग्राम सभ होइत रहैत छैक आ हमरो सभक समयमे होइत छलैक तेँ ताहि सभमे भाग लेबाक कोनो अवसर नहि हुसैत रही. बंगाली संगी-साथी आ अपन कला-संस्कृतिक प्रति ओकरा सभक प्रेम हमरो अपन कला-संस्कृतिसँ जुड़बाक लेल सदैव प्रेरित करैत रहल. फेर जखन चेतन भेलहुँ तँ तावत बाबूजीक जुड़ाव सेहो एतुका मिथिला-मैथिलीक कतिपय गतिविधिमे रहैत छलनि. एही लाथेँ हमहूँ मिथिला मैथिलीसँ लगीच होइत गेलहुँ. 
मैथिली रंगमंचसँ हमर जुड़ाव २००६सँ अछि. एहिना कोनो कार्यक्रममे गेल रही तँ आदरणीया अणिमा सिंह जी मंचपरसँ "नैन न तिरपित भेल" सीरियलक निर्माणक विषयमे घोषणा केलखिन आ एकटा अभिनेत्रीक वेकेन्सी द' कहलखिन्ह. हमरा भेल जे ट्राइ करबाक चाही. कास्टिंग भेलैक आ हम सेलेक्ट भेलहुँ. एतहिसँ हमर अभिनय यात्रा आरम्भ होइत अछि. फेर शायद २००७मे एतहि विद्यापति भवन उद्घाटन रहैक. ओतहि आदरणीय रामलोचन जीक माध्यमे कोकिलमंचक नबोनारायण मिश्र जीसँ परिचय भेल आ ओही बरख हम अपन जीवनक पहिल नाटक "धूर्तसमागम" खेलेलहुँ. पहिने तँ साइड रोल भेटल रहय मुदा, जे लीड रोलमे रहैक से किछु कारणवश बादमे मना क' देलकनि तँ हमही लीड रोल केने रही. एखनधरि कुल पाँचटा नाटकमे भाग लेबाक अवसर भेटल अछि. सभटा नाटक कोकिल मंचेक द्वारा आयोजित छलैक. एकर अलावे मैथिली फिल्म "पिया संग प्रीत कोना करबै"मे सेहो अभिनय केलहुँ. एहिमे हमर रोल नायकक बहीनक रहय.



एखन धरिक अपन रंगयात्रा'क किछु अनुभव, जे सभसँ साझी करय चाहब?
सभसँ पहिने इएह कहब जे एखनधरि रंगयात्रामे हमरा नाटक अधिक प्रभावित कएलक अछि. आ हमरा हिसाबे ई कठिनगर सेहो छैक किएक तँ एहिमे परफार्म करैत काल री-टेक'क सुविधा नहि भेटैत छैक. तेँ कलाकारकेँ अपन अभिनय'क प्रति बहुत साकांक्ष रहय पड़ैत छैक. अपनहि टा किएक? अपन अपोजिट कैरेक्टर्सक अभिनयक प्रति ओहिसँ बेसी. एकरा अनुभव कहियौ या संस्मरण जे मोन पड़ैत अछि- "नैन न तिरपित भेल" मे हमर जे भूमिका रहय, आ तदनुरूप जे ओकर डॉयलॉग सभक भाषा रहैक ताहि हिसाबेँ हमरा अपेक्षित टोनमे बाजब नहि ओरियाय. एहिसँ हम एतेक परेशान भ' गेलहुँ जे एकबेर तँ हम ओकर डॉयलॉग जे लिखने रहथिन्ह, हुनका लग पहुँचि गेलहुँ आ ओकर भाषा-परिवर्तन करय लेल कहयलियनि. मुदा, ओ पात्रक हिसाबे एहन भाषाक अनिवार्यताक हवाला दैत भाषा-परिवर्तनसँ मना क' देलनि. फेर हम तेहन परेशान भ' गेलहुँ जे एकबेर तँ सीरियल छोड़बाक बिचार सेहो क' लेने रही मुदा, तखनहि अपन बंगाली को-एक्टर सभकेँ देखलियैक. खासक' डायलॉग डिलेवरी'क लेल ओ सभ जाहि तरहेँ अभ्यास करैत छल ताहिसँ हमरा प्रेरणा भेटल आ तय केलहुँ जे जँ ई सभ बंगाली भ' क' मैथिल'क टोनमे बाजि सकैए तँ हमर तँ मातृभाषा मैथिली अछि. आ फेर सभटा दिक्कत दूर होइत चल गेल.

मैथिली रंगकर्म आ आन भाषाक रंगकर्मसँ कोन तरहेँ भिन्न कहल जा सकैए ?
मुख्यतः मैथिलीक अलावे किछु मराठी, हिन्दी आ बंगला'क नाटक देखबाक सुयोग लागल अछि. ताहि आधारपर कही तँ मैथिली नाटक कि रंगमंच बहुत पाछाँ लगैए. से टेक्नॉलॉजी, टैलेन्ट, स्टेज, स्क्रिप्ट, सभ स्तरपर. हमरा सभकेँ एखनो बहुत प्रयास करबाक जरूरति अछि. आ सभसँ पहिने अपन सोच बदलबाक जरुरति अछि. अपन ट्रेन्ड सेट करक चाही. हमरा सभकेँ अपन ट्रेडमार्क कन्सेप्टसँ किछु मोहभंग करब सेहो जरूरी बुझाइत अछि. जेना एकटा उदाहरण दी जे एखनो चाहे जे कोनो मैथिली नाटक होइ, ओकर कथानक चाहे जे कोनो देश-कालसँ समबद्ध होइ मुदा, यदि ओहिमे भोरका सीन छैक तँ म्युजिशीयन बाँसुरीक धुन बजबिते छथि. की बाँसुरी नहि बजतैक तँ भोर नहि हेतैक. एहि बातकेँ आनो तरहसँ तँ देखायल जा सकैए. ई सभ एहन बात छैक जे नवतुरियाकेँ अखरैत छैक आ ओ सभ अपनाकेँ एहिसँ जोड़ि नहि पबैत अछि.



कलकतिया रंगमंच जे आधुनिक मैथिली रंगमंचक अगुआ बनल छल, से की आइयो मैथिली रंगमंचक ओहिना प्रतिनिधित्व करैत अछि? जँ नहि तँ तकर की कारण देखैत छी ?
हमरा नहि लगैए जे वर्तमानमे कलकतिया रंगमंच मैथिलीक अगुआ रंगमंचमे अछि. एहि पछुआयबक सभसँ पैघ कारण हमरा हिसाबेँ इएह कहल जा सकैए जे एतुका अग्रज पिढ़ी जाहि समर्पण ओ उत्साहसँ एतय मैथिली रंगमंचकेँ ठाढ़ कएने छलाह, बादक पिढ़ी तेहन उत्साह आ समर्पण नहि देखेलक. जगह आ टीम भावनाक अभाव सेहो कलकतामे मैथिली नाटकक पछुएबाक एकटा प्रमुख कारण रहलैक. संस्था-संस्थामे बँटल एतुका मैथिल समाज, कलाकार वर्गकेँ सेहो प्रभावित केलक. फलतः एक-दोसराक प्रति अनास्थाक विस्तार होइत गेलैक आ संस्था सभ "अपन नाक उँच-अनकर नाक बूच"क तर्जपर दोयम दर्जाक स्क्रिप्ट, कलाकार, आदिकेँ चुनैत रहल. निर्देशक सभ अपना-अपनी भाँज पुरबैत रहलाह. कही तँ सभ कियो मिलि बस दिन कटैत रहल अछि आ तेँ आइ एतुका मैथिली रंगकर्म ओ रंगकर्मीक कोनो विशेष पहचान नहि बँचलैक.

कलकतिया रंगमंचपर मैथिलानीक उपस्थिति नगण्यप्राय रहलनि अछि. किएक?
एहि लेल पुरुष आ महिला दुनू समान रूपेँ दोषी छथि. ताहिमे हम महिलाकेँ बेसी दोषी मानैत छी. लेकिन, चूँकि हमहूँ एकटा महिला छी आ एतुका समाजसँ सेहो किछु-किछु परिचित छी तेँ इहो कहब जे मैथिलानीमे पुरूषक बीच आबि, अपन प्रतिभा प्रदर्शनक साहस बड़ कम होइत छनि. कखनो काल इहो लगैत अछि हमर सभक पुरुष समाज एखनो, एकैसमो शताब्दीमे, नारीक महत्वकेँ ठीकसँ नहि जानि पौलक अछि. ओकर इज्जति केनाइ नहि सीखि सकल अछि. दोसर गप जे हमर सभक सामाजिक संरचना सहो तेहने सन अछि. एतय सभ कियो रोजी-रोटी'क जोगारमे अबैत छथि. बादमे सभक परिवार सेहो अबैत छनि. पहिने तँ सभ ओरियाने-पातीमे व्यस्त रहैत छथि. फेर हमर सभक संस्कार रहल अछि जे, अपना एतुका महिला लोकनिक लेल परिवार सर्वोपरि होइत छनि. आ तही खातिर अपन सभ सख-मनोरथ, प्रतिभा-क्षमताकेँ डाहि लैत छथि. आन कोनो काज करैत काल हमरा सभकेँ लोक-लाज नहि होइत छैक ककरो मुदा, मंचपर अबैत काल सभसँ बेसी लोकलाज होइत अछि. अपन अनुभव कहैत छी जे, हम कतेको कलाकारकेँ जनैत छियनि जे सभ अपन परिवारकेँ नाटक हॉलमे देखय लेल नहि अनैत छथिन्ह, कारण जे ओ निगेटिव रोल करैत छथि आ से जँ हुनकर परिवार देखि लेतनि तँ ठीक नहि. आब कहू जे एहिसँ पैघ बिमारी की भ' सकैत छैक? हम सभ कोन युगमे जीबैत छी एखनो?



समकालीन मैथिली नाटक केर सभसँ पैघ विशेषता की अछि तहिना सभसँ पैघ कमी की अछि?
मैथिली नाटकक सभसँ पैघ विशेषता इएह अछि जे एखनधरि एहिमे अश्लीलताक प्रवेश नहि भेलैए. ओना पहिनहुँ कहलहुँ, स्क्रिप्ट, आधुनिक तकनीकीक प्रयोग, डायलॉग आदि स्तरपर मैथिली रंगमंच बहुत पाछाँ अछि. पटकथामे निर्देशनक दृष्टिकोणसँ अव्यवहारिता सेहो बहुत पैघ समस्या छैक. नाटककार लोकनिकेँ सेहो नाटक लिखबासँ पहिने रंगमंचक अध्ययन करबाक चाही.


रंगमंचक अभिनय आ वास्तविक जीवनमे अपन भूमिका'क निर्वाहमे कतेक अन्तर छैक?
निसन्देह, जीवन. एहिमे एकहि संग बहुत रास पात्रकेँ जीबय पड़ैत छैक. आ हरेक क्षण सफलता ओ असफलताक धुकधुकी पैसल रहैत छैक.

अहाँक रंगकर्ममेँ अहाँक परिवार कतय धरि सहयोगी बनल अछि?
एक पाँतिमे कही तँ- अपन ड्योढी धरि. बादक रस्ता हम अपने तय करैत छी. दोसर शब्दमे कहि सकैत छियैक जे रंगमंचक प्रति आकर्षण छल तेँ हम एसगरे आगाँ बढ़लहुँ आ ताहिेम परिवार कहियो बाट नहि रोकलक. तेँ मौन समर्थन सेहो कहि सकैत छियैक एकरा. 

समकालीन मैथिली रंगमंचकेँ नव आयाम प्रदान करबा हेतु अहाँक पाँचटा सुझाव चाहब?
नाटक'क विकास लेल इमानदार प्रयास हेबाक चाही, आधुनिकताक समावेश हो, व्यावसायिकता आबय, रोजी-रोजगारक माध्यम बनय आ नवका पिढ़ीकेँ जोड़बाक प्रयास हो. 

नवतुरिया कलाकार जे बहुत प्रभावित कएने होथि?
नवतुरियामे रंजीत खूब मेहनत करैत छथि. हुनकासँ आशा लगाओल जा सकैए. महिला कलाकार तँ कियो तेहन ध्यान नहि अबैत अछि एखन. ओना दिनेश मिश्र, भवनाथजी आदिसँ नवतुरिया अभिनय सीखथि. ई सभ माँजल कलाकार छथि. 

हाल मे प्रदर्शित कोनो नाटक जे सभसँ फराक आ प्रभावी लागल हो या जकरा समकालीन रंगमंचक लेल आदर्श नाटक कहल जा सकय?
आदर्श तँ नहि कहबाक चाही  मुदा, लोढ़ानाथ बेर-बेर मोन पड़ैए.

अहाँक प्रिय नाटककार आ निर्देशक? 
कलाकार तँ छी मुदा, नाटकक पोथी पढ़बासँ पियरगर हमरा एखनो हरिमोहने झा उपन्यास लगैए. हास्य-व्यंग हम खूब रूचिसँ पढ़ैत छी. तखन एखनधरि जतेक नाटक खेलायल छी कि देखने-पढ़ने छी ताहि आधारपर एखनो विद्यापतिये हमरा सभसँ प्रिय लगैत छथि मैथिली नाटककार'क रूपमे. निर्देशनमे मैलोरंग'क प्रकाश झासँ प्रभावित छी. इच्छा अछि जे हुनकर निर्देशनमे कोनो नाटकमे भाग ली.

भविष्यक कोनो खास योजना, या फेर कोनो एहन काज जकरा पूर्ण करय चाहैत होइ या पूर्ण होइत देखय चाहैत छी?
इच्छा अछि जे हमरा सभमे मतैक्यता आबय. मतभेद होइ मुदा, मनभेद नहि रहय. एतय एखन जतेक मैथिल-संस्था सभ अछि सभपर प्रायः पुरुष लोकनिक आधिपत्य छनि तेँ इहो चाहब जे एतुका मैथिलानी अपना लेल संगठित होथि. कए बेर परोक्ष रूपेँ प्रयासो कएल मुदा, तीन-चारि गोट महिलासँ अधिक नहि भेटलीह...साड़ी-गहना कीनैत काल अपन समाजक महिलाकेँ किनको अनुमति कि सहयोगक जरुरति नहि रहैत छनि मुदा, सामाजिक कार्य लेल पति ओ परिवारक लाइसेन्स आवश्यक. ई बहाना छैक. एहिसँ हुनका सभकेँ मुक्त हेबाक चाही. अपन इच्छाशक्तिकेँ मजगूत करथि आ अपना जीवनक आनन्द उठाबथि. समाजक प्रति अपन योगदान सुनिश्चित करथि.

महिला सभक समस्या निवारणक पक्षमे अहाँक स्वर हरदम जोरगर देखैत छी, जे कि एकटा महिला हेबाक नातेँ स्वाभाविको अछि मुदा, कोलकातामे मिथिला-मैथिली क्षेत्रमे अनेक संस्था कार्यरत अछि किन्तु मैथिलानी सभक बीच तेहन कोन चेतना नहि अभरैत अछि. की कारण छैक, केहन प्रयासक खगता छैक?
एहि अवचेतनाक कलेक्टिव रीजन छैक. एकरा एकटा सीरिजमे सेहो देखि सकैत छियैक. जेना महिला सभ कम पढ़लि-लिखलि होइत छथि. प्रायः सभ कियो ग्रामीण पृष्ठभूमिसँ अबैत छथि. एहनामे हीन भावनाग्रस्त पुरुष वर्ग हुनका सभकेँ कतहु अपना संगे नहि लए जाए चाहैत छथि. फेर महिला सभक मोनमे सेहो अनुभव करय लगैत छथि जे ओ सभ कतहुँ ने कतहुँ पाछाँ छथि. ओ सभ अपन तुलना अपन आस-पासक आन-आन भाषा-भाषीसँ करय लगैत छथि. किछु दिनक बाद अपन पति घर-परिवारकेँ प्रभावित करबाक हेतु अन्य भाषा-भाषी'क अनुकरण सेहो करय लगैत छथि. एतहिसँ अपन भाषा-संस्कृतिक प्रति हुनका मोनमे अवचेतना कि हीन भावना जन्म लैत छनि आ परिणाम होइत छैक जे पीढ़ी दर पीढ़ी ओ सभ मिथिला-मैथिलीसँ कटैत चलि जाइत छथि. जहाँधरि एकर सुधारक प्रयासक गप छैक तँ ताहि लेल सेहो कलेक्टिव प्रयासक जरूरति छैक. शिक्षा आ अपन भाषा-संस्कृतिक प्रति गौरवानुभूति ताहिमे प्रथम शर्त अछि.

चन्दन कुमार झा


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