गाम सं भागल जा रहल अछि नाटक : अरविन्द अक्कू

 
प्रसिद्ध रंगकर्मी, गीतकार ओ नाटककार अरविन्द अक्कू सं चन्दन कुमार झा द्वारा लेल गेल साक्षात्कार केर प्रमुख अंश—

अहाँ अपन साहित्य आ' रंगयात्राक संबंधमे जानकारी दिअ"? अपने लेखन दिस कोना आकर्षित भेलहुँ ?
नेने सं नाटकक प्रति लगाव छल. नेनामे चद्दरिमे जनेउ तोड़ि कए मुशहरीक डंटामे बान्हि नाटकक पर्दा बना घरे मे नाटक खेलाइ आ’ ताहि लेल माय सं पिटाइ सेहो लगैत छल..भरिसक सैह पिटाइ वरदान साबित भ’ गेल आ हमरा सन अगत्ती छओड़ा नाटककार बनि गेल. नेनामे पिताक नजरिमे हम महान असाहित्यिक ओ असांस्कृतिक रही. मुदा हुनक धारणाकें हम बदलि देलहुं. ओना नाटकक लेल सामाजिक यातना कम नै सहने छी.समाज नटकिया, बिपटा बूझि बड़ उपेक्षा करै मुदा, हम सबटा सहैत आगू बढ़ैत गेलहुं .

एखनधरि अहाँक कतेक रचना प्रकाशित अछि ? ई सभटा नाटके अछि वा कोनो आन विधामे सेहो पोथी प्रकाशित अछि ?
एखनधरि पंद्रह गोट नाटक -आगि धधकि रहल अछि, ताल-मुटठी, पातक मनुख, एना कते दिन, अन्हार, जंगल, आतंक, रक्त, के ककर, वाह रे हम वाह रे हमर नाटक, पढ़ुआ कक्का एला गाम, गुलाबछडी, राज्याभिषेक, अलख-निरंजन, तेसर घर ओ झिझिर-कोना ओ दुइ गोट गीत संग्रह प्रकाशित अछि. एकर अतिरिक्त विभिन्न पत्र पत्रिकामे कथा, कविता, गीत, गजल, निबंध ओ एकांकी प्रकाशित अछि. दूगोट हिंदी नाटक ओ सात गोट मैथिली नाटक मंचित अछि जकर प्रकाशनमे लागल छी. 


अहाँ मैथिली नाटक आ' रंगमंचक भविष्य केहन देखैत छी ?
मैथिली नाटक ओ रंगमंचक भविष्य बहुत नीक नै. किछु व्यक्तिवादी लेखक ओ रंगकर्मी मात्र अपन प्रचारमे लागल छथि जिनका अपन स्वार्थ सिद्धिक कामना छनि, मैथिली नाटक ओ रंगमंचक कोनो चिंता नहि. नाटक मिथिलाक गाम से भागल जा रहल अछि आ महानगरकें धेने जा रहल अछि जे नीक नहि. नाटक टीमवर्क छियै.जँ से नै रहतै त’ नाटक मरि जेतै. जेना समाज से परिवार ,परिवार से व्यक्ति कटल जा रहल अछि तहिना एक रंगकर्मी दोसरा सँ क़टल जा रहल अछि जाहि से नाटक ओ रंगमंच दुनूक अहित भ' रहल छैक.

गामघरमे नाट्य मंचन प्रायः विलुप्त भेल जा रहल छैक. एकर की कारण छैक ? गमैया नाटक फेरसँ लोकप्रिय होइ ताहि हेतु की उपाय अहाँ देखैत छी ?

एकदम सही. एकर मुख्य कारण अछि पेटक ज्वाला .प्रत्येक शिक्षित ओ बेरोजगार युवक पेटक बेगरतामे गाम छोड़ि देलक आ जे बचल अछि ओकरा सरकारी खैरात लेबा से फुर्सत नै छै. तखन के करत नाटक? शराब–दारूमे डूबल गामक युवावर्ग रंगमंचक भविष्य की सोचत? हं किछु गाममे रंगमंच आइओ जीवित अछि आ अपन सीमित साधनमे रंगमंच कए जियौने अछि.मैथिली नाटक ओ रंगमंच तखने बांचत जखन ग्रामीण मंच जीवित रहत. तैं नाटककार ओ रंगकर्मीकें महानगर केर मोह त्यागि गाम दिस जाय पड़तनि. हम गामक रंगमंचकें विकसित करबामे लागल छी.

मैथिलीक कोन नाटककार अहाँकेँ प्रभावित करैत छथि? 

सुधांशु शेखर चौधरी, गोविन्द झा ओ गुणनाथ झा.

तकनीकी दृष्टिकोणसँ मैथिली रंगमंच आ' आन भाषाक रंगमंचमे कतेक अंतर छैक ?
बेस अंतर छै..मैथिल अपनाकें ततेक श्रेष्ठ बुझइए जे अनकर नीको ने देखाए छै. अपना आँखि पर अह्न्कारक कारी पर्दा लगौने अछि त’ अनकर नीक चीज कोना सुझतै आ तखन कोना सीखत अनकर तकनीक? भरिसक तैं तकनीकी दृष्टिकोणसँ मैथिली नाटक आ' रंगमंच आन भाषाक रंगमंचसं पछुआयल अछि.

अहाँ गीतकारकेँ रूपमे सेहो बेस प्रसिद्ध छी. वर्तमानमे मैथिली गीतमे अश्लीलता बहुत बढ़ल जा रहल अछि. एकर की कारण आ निदानक की उपाय ?
ठीके वर्तमानमे मैथिली गीतमे अश्लीलता बढ़ल जा रहल अछि. एकर मुख्य दोखी छथि ओहन गीतकार जे क्षणिक लोकप्रियता लेल अश्लील गीतक रचना क’ मंच पर गाबि मैथिलीक प्रचार प्रसारक ठीकेदार बनल छथि . एहि प्रवृत्तिकें रोकए पड़त. अशिक्षा ओ अपसंस्कृति एहन रचना के बढ़ावा दैत अछि जकरा रोकब जरूरी .

नाटक-लेखन कालमे सुलभता पूर्वक मंचनक हेतु कोन-कोन पक्षपर नाटककारके धेयान देबाक चाही ?
पात्रक संख्या कम हो, स्त्री पात्र अधिक नहि हो, एक सं दु सेट हो ,संवाद चुस्त दुरुस्त हो ,कथानक सोझरैल हो, चरित्र स्थापित हो .

मैथिली भाषा रंगमंच पर प्रदर्शनक लेल कतेक सहज अछि ?
भाषा त' अभिव्यक्ति केर माध्यम थिक. तैं ई कहब जे मैथिली भाषा रंगमंच पर प्रदर्शनक लेल सहज नहि उचित नै.

आन-आन भाषा-भाषीकेँ मैथिली रंगमंच आ' नाटक एखनहुँ प्रभावित नहि कऽ सकल अछि. अहाँ एहिसँ कतेक सहमत छी ?
से बात नै. हं एतबा अवस्से जे मैथिली रंगमंच आ' नाटक आन-आन भाषा-भाषीकेँ ओतेक प्रभावित नहि कऽ सकल अछि जतेक करबाक चाही.

बहुत ठाम देखल जाइत अछि जे मैथिली मंच संचालनक समय हिन्दी-उर्दूक शाइरी सभक सहारा लेल जाइत अछि. की मैथिलीमे एहन शाइरी वा उद्धरणक कमी अछि वा ई संचालकक मैथिली साहित्यक अज्ञानता अछि ?
ई संचालकक मैथिली साहित्यक अज्ञानता अछि. मैथिलीमे एक सं एक उद्धरण अछि .मात्र अवसर पर प्रयोग करबाक आवश्यकता अछि. अन्य भाषा केर नक़ल कए मैथिली मंचकें आगाँ नै बढ़ाओल जा सकैत अछि .मैथिली मंचकें अप्पन भाषा ,अप्पन स्टाइल ओ अप्पन पहिचान विकसित करय पड़तै.

नाटकक पात्र, संवादक भाषा आ' कथानक अहाँ हिसाबेँ केहन हेबाक चाही. संवादक क्रममे अपशब्द ईत्यादिक प्रयोगकेँ अहाँ कतेक उचित मानैत छी ?

नाटकक पात्र कथानुसार हेबाक चाही .जाहिवर्गक पात्र हो ओही वर्गक भाषाक प्रयोग हेबाक चाही संगहि संवाद सेहो ओकर शिक्षाक अनुसार हेबाक चाही. संवादक क्रममे अपशब्दक  प्रयोग जँ घटनाक स्थिति ओ पात्रक चरित्रक मांग छै त' कोनो आपत्ति नहि .मुदा, जँ नाटककार अपनाके बेसी आधुनिक बुझेबा लेल अपशब्दक प्रयोग करैत छथि त' निंदनीय.

अंतमेँ नवतुरियाकेँ किछु कहए चाहबनि ?
नवतुरियामे हमरा बड़ बेसी सम्भावना बुझाइए  .ओकरामे प्रतिभा कूटि-कूटि क' भरल छैक. ओ सभ हमरा सभ सं बेसी शार्प अछि. तैं युवावर्ग सं हमर आग्रह जे मिथ्या स्वाभिमान सं बचैत मात्र अपन रचना पर ध्यान देथि, प्रसंशा व निंदा पर नै. प्रशंसक ढोल पिटला सं क्यो साहित्यकार नै भ' जाइए. ओकर रचनाक उचित मूल्यांकन ओकरा स्वतः शीर्ष पर पहुंचा देइत छै. 
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