मनोज शांडिल्य केर किछु कविता

मनोज शांडिल्य एखन लगातार मैथिलीमे कविता लीखि रहल छथि. हैदराबादमे प्रवासक' रहल शांडिल्यक कविता हृदयकें छूबैत अछि. प्रस्तुत अछि हिनक किछु टटका रचना :

।। जन्मभूमि ।।

माटि-पानिक
अनुपम सुगंध
आँगन-दलान
खेत-खरिहान 
होइत
कइएक मील
बसातक संग 
उड़ैत
पैसैत अछि
श्वासक संग
हमर नस-नस मे
मिज्झर होइत अछि 
प्राण संग
आ, पुछैत अछि
बौआ कहिया अएबह
अप्पन ठाम
अप्पन गाम?

पुबरिया ओसाराक
पुरबा बसात
पछबरिया ओसाराक
ढेकी आ जाँत
बाड़ीक केरा-लताम
कलमक सिनुरिया आम
धर्मराजक चिनबार
भनसाघरक सीक पर
कुच्चा आचार
बाबीक सब सरंजाम
एक-एक टा
खुट्टा आ खाम्ह
पठबैए संदेस
बौआ कहिया अएबह
अप्पन ठाम
अप्पन देस?

आँखि दुनू
सजल
कंठ कने
अवरुद्ध
सबटा खेल पेटक
मुदा आइ भूख
पेट सँ नहि
फाटइत करेज सँ
रहि-रहि उठइए
ह्रदय मे कतहु किछु
सुगबुग करइए..


।। डारि ।।

पुरना आवास
अतीतक आभास
मृदु-कोमल सीत
ह्रदय केँ छूबैत
कवि नज़रूलक गीत..

भरि घर
चौपेति कऽ राखल
स्मृत-विस्मृत
कतेको इतिहास
कतेको हर्ष
कतेको विषाद
कतेको गंध
कतेको स्वाद..

खिड़कीक बाहर
नीमक गाछ
गाछ पर सँ
कोइलीक वैह
चिर-परिचित गीत
पुछैत अछि भरिसक
कोना छह?
कतय छलह?
एतय सँ
किए गेलह मीत?

बौआइत चिड़ै
नोरायल आँखि
समटि कऽ पाँखि
फेर आबि बैसल अछि
किछु क्षणक लेल
अतीतक संग
हृदयालाप करैत
ओही गाछ पर
ओही डारि पर...


।। भोज ।।

गे बुधनी
कते बहारबएँ
हाइं हाइं कर
कने धरफड़ो
अबेर होइ छै
गे बहिनिया..

ठकुरबाड़ी मे भोज छै
छोड़ ई सब
चल चल चल!
आइ हमहूँ सब
खायब गऽ
आन मनुख सन..

बुढ़िया ठकुराइन
मुइलइए
जीबैत मे खूब खटेलकउ
घसलकउ-चुसलकउ
अन्न मंगलही तऽ
गरियेलकउ
धोअलकउ-कुटलकउ
आब मुदा बुढ़िया
मुइलउए
आइ खूब खुएतउ
भरि पेट
भरि मोन
चल चल चल
अबेर नइँ कर..

बड्ड दीब
तरकारी तीमन
खीर पूड़ी
रसगुल्ला पन्तुआ
आह आह!
बिसरि गेल स्वाद
आइ मोन पाड़ब
चल चल चल..

गे नइँ बूझै छही
अबेर करबें
तऽ साफ़ भऽ जेतइ ऐंठार
लूटि लेतउ सब
मोन नइँ छउ ओइ बेर
केना लूटि-मारि भेल रहइ
हाथ लागल एकटा पत्तल
कोना झीकि लेने रहउ
खौंझायल कुकुरबा..

चल चल चल!
अबेर नइँ कर
आब
सौंसे भऽ गेलइए
मारिते रास
खौंझायल कुकुरक हेंज
टोले-टोल
भूकइत/हबकइत
कटाह कुकुर सब
चल चल चल!
अबेर नइँ कर...
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