हमर मातृभाषा मैथिली अछि : नचिकेता

मैथिलीक प्रसिद्ध भाषाविद ओ साहित्यकार उदय नारायण सिंह 'नचिकेता' सं चन्दन कुमार झा द्वारा लेल गेल साक्षात्कारक प्रमुख अंश—  


अपनेक साहित्य समाजक कोन वर्गकेँ समर्पित रहैत अछि? अहाँ अपना रचना लेल पात्र कतए सँ ताकि अनैत छी?
हमर कविताक आ नाटकक पात्र सब समाजक विभिन्न वर्ग सँ अबैत अछि. तखन उच्च-वर्ग सँ कम मुदा मध्यम वर्ग आ निम्न-मध्यम वर्ग सँ बेसी रहैत अछि. कुल मिलाकऽ कही तऽ संपूर्ण समाजक प्रतिनिधित्व हमर रचना सभमे भेटत.

अपने मैथिली लेखनकेँ कतेक प्राथमिकता देइत छियैक? मैथिलीक अलावेँ कोन-कोन भाषामे लिखैत छी? 
एखनधरि हमर कुल सतरह गोट पोथी मैथिलीमे प्रकाशित भेल अछि तखने फेर अहाँ अंदाज लगा सकैत छी जे मैथिलीकें कत्तेक प्राथमिकता देल गेल हमर साहित्य-जीवन मे. आ' ई अनवरत चलैत रहत. मैथिलीक अलावे हम बांग्ला आ' अंगरेजीमे लिखैत छी.

वर्तमान समयमे मैथिली साहित्यक विकासक बाटमे, अपनेक दृष्टिमे कोन-कोन बाधक तत्व अछि आ एकर निराकरण कोन रूपमे कएल जेबाक चाही?
सामान्यतः कोनो टा भाषा-साहित्यक विकासक बाटमे पाँच टा अभाव बाधक तत्त्व केर रूप काज करैत अछि. प्रकाशकक अभाव, उपयुक्त पत्र-पत्रिकाक अभाव, पाठकक अभाव, 'डिस्ट्रीब्यूशन'-केर अभाव, आ प्रशंसा-पुरस्कारक क्षेत्र मे स्वच्छताक अभाव. ई सभटा अभाव मैथिलीमे छैक. एहि अभाव सभकेँ दूर करबाक सम्मिलित प्रयास सँ एकर निराकरण संभव. 

अहाँकेँ किएक लगैत अछि जे मैथिली सम्मान-पुरस्कार देबा मे पक्षपात होइत छैक?
एहन खाली हमरे नहि बहुतोकेँ लगैत छनि आ' तकर कारणों अनेक छैक. मैथिलीमे जकरे पुरष्कार भेटैत छैक तकरे विरोध हुअए लगैत छैक. लेकिन एकर माने ई नहि जे सदिखन अयोग्येँ पुरष्कृत होइत छथि. मुदा ईहो झूठ नहि जे अयोग्यो सम्मानित-पुरष्कृत होइत छथि. हमरा सभ (मैथिली साहित्यकार)क १९६४क बाद साहित्य अकादमी एकमात्र लक्ष्य बचि गेल अछि आ' सबदिन एकरा लेल राजनीतिमे ओझरायल रहलहुँ एहिसँ आगाँ सरस्वती सम्मान, ज्ञानपीठ पुरष्कार, कालीदास सम्मान आ' फेर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय पुरष्कारक लेल मैथिल कहियो रुचि नहि देखेलक अछि. कोनो उल्लेखनीय प्रयास नहि देखाइत अछि एहि मादेँ. सम्मान-पुरष्कार आ' अकादमीसँ राजनीति एकदम्मे हटि जेतैक से नहि हेतैक किएक त' ई राजनीति त' नोबेल पुरष्कारक लेल सेहो होइत छैक. लेकिन हमर मानब अछि जे मात्र साहित्य अकादमीयेक लेल ओझरायल नहि रही अपितु एहिसँ फराक सेहो हमरा सभकेँ सोचबाक आ' प्रयास करबाक बेगरता अछि तखने मैथिली आन-आन भाषा-साहित्यकेँ अपना दिस आकृष्ट कऽ सकत.

हालहिमे डॉ.वीणा ठाकुर साहित्य अकादमीमे मैथिली प्रतिनिधिक रूपमे चूनल गेलीह से समाद भेटल अछि. संगहि सुनबामे आयल जे अपनेक नाम सेहो किछु संस्था द्वारा प्रेषित कएल गेल छल एहि पदक हेतु किंतु उड़ती खबरि भेटल अछि जे अहाँ कतहु लिखने छियैक जे अहाँक मातृभाषा बंगाली अछि मैथिली नहि आ' तैँ अपनेक नामपर एहि पदक लेल विचार नहि कएल गेल?
सभसँ पहिने तऽ कहि दी जे हमरा एहि संबंधमे एखनधरि कोनो जनतब नहि अछि. यदि कियो हमर नाम एहि पदक लेल प्रेषित कएने छलाह तऽ ओ' हमरा सँ बिनु पुछने कएने छलाह. वीणा ठाकुर मनोनित भेलीह से सुनि नीक लागल. जहाँ धरि हमर मातृभाषाक प्रश्न अछि तऽ हम कहब जे हमरा नहि मोन पड़ैत अछि जे हम कतहु एहन लिखने होयब किएक त' हम जतय कतहु अपन मातृभाषा लिखैत छी ततय मैथिलीए लिखैत छी वा फेर मैथिली आ' बंगला दुनू लिखैत छी. मैथिली आ' बंगला दुनू हमर मातृभाषा अछि एकरा हम नकारि नहि सकैत छी किएक त' मैथिली हमर पिताक भाषा छलनि त' बंगला माएक. लेकिन मात्र बंगला हमर मातृभाषा अछि तेहन कतहु लिखने होयब से मोन नहि पड़ैत अछि. जहाँ धरि हमर नामपर विचार नहि भेल तकर पाछा एकटा ईहो कारण भऽ सकैत छैक जे हमर कोनो सहमति पत्र नहि छलैक. तखन हमर नाम हमरा सं बिना पुछने किएक देल गेल तकरा पाछाँ भऽ सकैत छैक जे कोनो राजनीति होइक जाहिसँ कि कम से कम अगिला पाँच साल तक हमरा अकादमीक पुरष्कार नहि भेटय. खैर, जे कारण हो, हमरा एहन विषयमे विशेष रुचि नहि रहैत अछि.

मैथिलीमें साहित्य आ' साहित्यकारक समृद्ध परंपराक अछैतो एखनधरि मैथिली-साहित्य आन-आन भाषा-साहित्यकेँ प्रभावित किए नहि कऽ सकल अछि ?
मैथिलीमे एखनो सही आ सफल अनुवादकक अभाव खटकैत अछि. हमर साहित्यकार नीक अंग्रेजी में अपना कें प्रजेंट नहि क' सकैत छथि. भ्रमण आ सख्यता-स्थापन हुनका लोकनि बूते नहि होइत छनि. तैँ आन-आन भाषा-साहित्यपर मैथिलीक विशेष प्रभाव देखबामे नहि अबैत अछि.

अनेकानेक प्रयासक बावजुदो एखनधरि मैथिली लेखनक मानकीकरण नहि भऽ सकल अछि. एहि विषयमें अपने की कहए चाहब? ई कतेक आवश्यक छैक?
बंगला में १८०० सँ १९३० धरि साहित्य-चर्चा केर बाद १९३३ ई में कलकत्ता विश्व-विद्यालय केर नेतृत्त्व में (सभापति छलाह कवि टैगोर आओर linguist सुनीति बाबू, statistician प्रशांत चन्द्र महलानाबिश, physicist जगदीश बसु आदि सदस्य छलाह) मानकीकरणक कार्य सम्पन्न भेल छल. मैथिली मे सुभद्र झा, जयकांत मिश्र, सुधांशु शेखर चौधुरी, प्रबोध नारायण सिंह, राजेश्वर झा आ गोविन्द झा एहि दिशा मे भाषा विशारद अथवा संपादकक हैसियत सँ प्रयास अवश्य केलनि मुदा आब समय आयल अछि consolidated रूप में किछु करबाक.

नवलेखनमेँ आएल भाषिक गिरावट रचनाक स्तरीयताकेँ कतेक प्रभावित करैत छैक ?
खाली गिरावटे आयल अछि से किएक मानि कए चलै छी? नवलेखन सँ बहुत रास नव-नव आयाम सेहो जुड़लै अछि जे मैथिलीकेँ समृद्ध बनेलकैक अछि. ई उतार-चढ़ाव त' चलिते रहैत छैक.

अहाँ 'मिथिला-दर्शन'क संपादन सेहो कऽ रहल छी. मैथिली पत्रकारिताक सोझाँ कोन-कोन समस्या छैक आ एकर निदानक की उपाय?
मैथिली पत्रकारिता, खास कऽ पत्रिकाक प्रकाशनसँ संबंधित तीन टा मुख्य समस्या हमरा वर्तमान मे देखाइत अछि. पहिल आ'सभसँ पैघ समस्या छैक जे मैथिलीमे एखनो नियमित रूपेँ स्तरीय रचना नहि भेटि पबैत छैक. लेखक सभ अपन रचनाकेँ जल्दी सँ जल्दी प्रकाशित करबा लेल अगुताएल रहैत छथि. नव आ' नीक रचना ताकब खाली हमरे लेल नहि अपितु प्रायः सभ संपादकक लेल समस्या छनि. दोसर समस्या छैक जे हम सभ एखनो व्यावसायिक दृष्टिकोणसँ नहि सोचैत छी, पत्र-पत्रिकाक वितरणक व्यवस्था पर धेयान नहि देइत छी. पाठक मुफ्त मे पत्रिका पढ़य चाहैत छथि. एहिठाम कहि दी जे हमसभ (मिथिला दर्शन) मुफ्तमे बाँटब बन्न केने छी. एहिलेल किछु गोटे कहबो केलाह जे हमर सभकेँ तऽ सभदिन मुफ्ते मे पत्र-पत्रिका भेटैत रहल अछि आ' तैँ हमरा सभक प्रति हुनका सभक मोनमे कष्ट सेहो हेतनि. मुदा, आब ई परिपाटी बंद करबाक बेगरता अछि आ' प्रकाशक सभकेँ अपन-अपन बिजनेस मॉडल बना पत्र-पत्रिका बहार करबाक चाहियनि. एहि क्षेत्रक तेसर समस्या छैक जे पत्र-पत्रिका तऽ बहुत बहरायत छैक मुदा फेर अनियमित भऽ जाइत छैक आ' क्रमशः बंद बऽ जाइत छैक. हमर सभक प्रयास रहैत अछि जे पत्रिका अपन नियमित प्रकाशनक तिथिसँ सात दिन पहिनहि तैयार भऽ जाए. अनियमित प्रकाशनक समस्या आब ई-पत्रिका सभमे सेहो देखबामे अबैत अछि किंतु ओ' बहुत कम छैक.

मैथिलीक लोकप्रियता बढ़ाब' मे इन्टरनेटक केहन भूमिका रहल अछि आ' भविष्यमे एकर भूमिकाक मादेँ अपनेक की दृष्टिकोण अछि?
पछिला किछु समयमे मैथिलीकेँ लोकप्रिय बनेबामे इंटरनेटक भूमिका निश्चिते बहुत रहलैक अछि. सोशल साइट, ब्लॉग आ ई-पत्रिकाक योगदान जल्दीबाजी होयत. हँ एहि सभमे एकटा चीज स्थायी रुपेँ रहि जेतैक ओ छैक ई-पत्रिका. संगहि आब त' प्रसिद्ध प्रकाशक सभ सेहो पोथी-पत्रिकाक प्रकाशन इंटनेटक माध्यमे करैत अछि तैँ ई दिनानुदिन बढबे करत. तखन सोशल साइट्सक लोकप्रियता अस्थायी होइत छैक से देखल गेल अछि लेकिन कोनो ने कोनो रूपेँ त' रहबे करतैक से मैथिलीकेँ भविष्यो मे एहिसँ फायदा हेतैक ताहिमे कोनो दू मत नहि. एहिठाम एकटा बात और छैक जे शहरी मैथिल त' एहिसँ लाभ उठबैत छथि मुदा असली मिथिला मे रहनिहारकेँ एखनो इंटरनेट आ' कम्प्यूटर सुलभतासँ नहि भटैत छनि तैँ हुनका सभकेँ एहिसँ कोनो खास फायदा नहि छनि.

नवतुरिया आ' नवलेखक सभकेँ अपना दिस सँ किछु कहए चाहब?
नवीन लेखक वर्ग कें सलाह एतबे द' सकै छी जे अपन 'एनर्जी' पूर्णरूपें लगा नहि दियौक. तकर परिमार्जन संशोधन तथा पुनरावलोकन केर प्रयास अवश्य करू; द्वितीयत: - पाइ बिना किए केओ लिखत ई बात त' ठीक छै, मुदा पाइये कमाबय लेल लेखकीय जीवन कें उत्सर्ग क' देब सेहो ठीक नहि; तेसर बात ई जे खूब पढ़ू - अन्य मैथिल लेखक केर रचना त' पढ़बे करब, आन-आन भाषा मे की-सब लिखल जा रहल अछि तकरा पढ़बाक आ जानबाक बड्ड आवश्यकता अछि.

नचिकेता'क मैथिली रचना संसार— 
कवयो वदन्ति (कविता संग्रह, 1966), नायकक नाम जीवन (नाटक, 1971), अमृतस्य (कविता संग्रह, 1971),एक छल राजा (नाटक, 1974), नाटकक लेल (नाटक,1974), प्रत्यावर्तन (नाटक, 1976), आंदोलन (नाटक, 1977), रामलीला (नाटक, 1977), जनक आ' अन्य एकांकी (एकांकी संग्रह, 1978), अनुत्तरण (कविता संग्रह, 1981), ईश्वरचंद्र विद्यासागर (हिरणमय बनर्जीक पोथीक अंग्रेजी सँ मैथिली अनुवाद, 1983), प्रियंवदा (नाटक, 1988), रवीन्द्रनाथक बाल-साहित्य (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), मध्यमपुरुष एकवचन (कविता संग्रह, 2006), नो एंट्री: मा प्रविश (नाटक, 2008).

एकर अतिरिक्त मैथिली सँ अन्य भाषा मे हिनक अनुवाद छनि - अनुकृति (पचास वर्षक मैथिली कविताक बंगला अनुवाद, 1998), मैथिली साहित्येर इतिहास (जयकांत मिश्र क मैथिली साहित्यक इतिहास- बंगला अनुवाद, 2003), ध्वसे जाय शांति-स्तूप (कीर्ति नारायण मिश्रक 'ध्वस्त होइत शान्ति स्तूप'क बंगला अनुवाद, 2012).
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