KB SERIES #6: गप्पक कारखाना

खाना सेहो नाना प्रकारक होइत अछि. भ्रम मे नहि पड़ी, हम कोनो खाएबला चीजक विषय मे नहि कहि रहल छी! आब तऽ बुझिये गेल होएबै जे हम केहन खानाक विषय मे कहि रहल छी. नइ बुझलियै...ओह, अहाँ केँ कतबो हम अपन संगे रखलहुँ तइयो बुधिक ताला नहि खुजल लगइए! कतबो बुद्धिवर्द्धक चूर्ण (खैनी) खुअओलहुँ तइयो अहाँक बुधि तेज नहि भेल अछि. ओना एकटा फकरा अवश्ये मोन अछि जे अहाँ बेसी काल पढैत छी-चालि प्रकृति बेमाए, तीनू संगे जाए. से तऽ जहिना हमरा पर लागू होइत अछि तहिना अहूँ पर लागू होइत होएत. से अहूँक चालि नहि बदलत शाइत!

खुरचनभाइ ओहि दिन बेस हल्लुक सन छलाह। पहिल बेर एहन लगैत छल जे ओ चिंता फिकिर ताक पर राखि अएलाह अछि हमरा दलान पर. नहि तऽ हुनक कपार पर कम सँ कम तीनटा रेघा अबस्से पारल रहैत अछि आ से स्थायी रूप सँ! 

सांझक पांच बाजि रहल छल, से चाहक बेर ओहिना भऽ गेल छल. मोन मे विचार अबैत छल जे अंगनाक मुँह पर जा कहैत छियैक मुदा तखनहि गुलटन चाह लऽ हाजिर भऽ गेल. आ खुरचनभाइक ठोर पर एक बेर फेर मुसकी पसरि गेल छलनि. ओ अविलंब ट्रे मे राखल दूटा कप मे सँ एकटा हथिया लेलनि. आ कहलनि, खानाक बात शुरू कयलहुँ तऽ पीना आयल! चाह पीबि बुद्धिवर्द्धक चूर्ण खुआएब अहाँ केँ. मुदा पहिने हमर बात आधे रहि गेल अछि. तऽ अहाँ केँ कहैत छलहुँ खानाक विषय मे!

ओह..छोडू पहिने एक विशेष प्रकारक खानाक विषय मे कहैत छी विस्तार सँ बाद मे कहब. खाना मे मिथिलाक खानाक तऽ कोनो तुलने नहि अछि मुदा एहि ठाम कारखानाक अति अभाव अछि! हम कहलियनि, कोन चीजक यौ. जाहि ठामक लोक एतेक बुधियार, चलाक, विद्वान, गुणी ताहि ठाम कारखानाक अभाव...बात किछु हजम नहि भेल! ओ कहलनि, कारखाना दू शब्द कार आ खानाक मेल सँ बनल अछि. एम्हरका रोड तेहन ने छै जे कार चलब मोश्किल...सुखलो मे फँसि जाइत छैक. आ खाना खा कऽ बैसए लोक तऽ बुझू जे पेट फुलि जाए. से कारखाना ताही लेल एम्हरका लोक केँ सूट नहि करैत छैक!

हम कहलियनि, भगवाने जखन वाम भेल छथिन तऽ...! सरकारक उदासीनता एहि क्षेत्र मे कारखानाक दुर्दशा लेल दायी अछि. खुरचनभाइ मुंह धुआइन करैत बजलाह, ओह...के' कहैत अछि जे एहि क्षेत्र मे कारखाना नहि अछि! हम ताहि पर कहलियनि, माथा तऽ अहाँक ठीक अछि ने आ कि फ्यूज उड़ि गेल अछि आइ-काल्हि! एखनहि तऽ कहलहुँ अछि जे एहि क्षेत्र मे कारखानाक अभाव अछि आ एखनहि बात पलटि गेलहुँ. 

खुरचनभाइ हमर बात पर जोर सँ हँसैत कहलनि, ओह..बात बाजि फेर पलटि जाएब, सीखि रहल छी हम. कारण राजनीति मे जँ कनियो पइठ रखबाक अछि तऽ ई गुण पहिने आवश्यक अछि! मुदा हम थोड़हि पलटलहुँ अछि अपन बात सँ..कने नजरिक फेरा अछि. हमर कहबाक मतलब छल जे मिथिला मे गप्पक कारखाना सगरो व्याप्त अछि! गप्प पर जँ अमल हो तऽ ई क्षेत्र देशक सभ सँ विकसित क्षेत्र बनि जाएत. मुदा एहि ठामक कारखाना मे मात्र गप्पेटाक उत्पादन होइत अछि. हम कहलियनि, पहिने चाह पीबि लिय', नहि तऽ गप्पक फेरा मे ओहो ठंढा जाएत. भाइ अविलम्ब चाह सुरकए लगलाह!

— रूपेश त्योंथ

मैथिली दैनिक 'मिथिला समाद' मे अगस्त 2008 सं दिसम्बर 2009 धरि दैनिक रूपें प्रकाशित धारावाहिक व्यंग्य 'खुरचनभाइक कछमच्छी' केर एक अंश. ज्ञात हो जे रूपेश त्योंथ अखबारक एहि लोकप्रिय कॉलम मे लिखबा हेतु छद्म नाम 'नवकृष्ण ऐहिक' केर प्रयोग केने छलाह.


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