हनुमान चालीसा : नियमित पाठ अछि लाभकारी 🙏


हनुमान चालीसा - Hanuman Chalisa : श्री हनुमान जी मिथिलाक बेटी मिथिलेश कुमारी सीता आ जमाए अवध कुमार श्रीराम केर प्रिय पात्र छथि. मिथिला मे हिनक पूजन व्यापक स्तर पर होइत अछि. कहल जाइत अछि जे हिनक मातृक मिथिला मे छनि. हनुमान जी जखन माता सीता केर संधान मे लंका पहुंचैत छथि त' अशोक वाटिका मे जानकी सं भेंट होइ छनि.
 
ओतए हनुमान जी 'मानुषी भाषा' मे सीता सं संवाद करैत छथि. कारण 'मानुषी भाषा' सीता आ हनुमान केर अतिरिक्त लंका मे आन केओ नै बूझि सकैत छल. मानल जाइत अछि जे ई मानुषी भाषा आओर किछु नै अपितु 'मैथिली भाषा' अछि. माता जानकी आ अंजनी पुत्र हनुमान जी दुनू मिथिला सं सम्बन्ध रखैत छथि आ तैं ओ एतुक्का भाषा मे संवाद केलनि. 

महावीर झंडा हो वा घर-आंगन केर तुलसीचौड़ा, हनुमान जी मिथिलाक संस्कृति मे रचल-बसल देव छथि. सम्पूर्ण सनातन धर्मी लोकनि सीताराम संगहि हनुमान जी केर आराधना अवश्य करैत छथि. तुलसीदास श्रीराम केर धरती अवध केर भाषा अवधी मे जे हनुमान चालीसा केर रचना केलनि से भाषा आ भूगोल कें पार करैत मिथिला सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष मे खूब प्रचलित भेल अछि. 

हम सब जखन कखनो संभव होइए हनुमान चालीसा पढ़ब पसिन करैत छी. एतय सुविधा हेतु हनुमान जी केर आराधना लेल किछु मंत्र आ हनुमान चालीसा देल गेल अछि, देखल जाए:

मनोजवं मारुततुल्यवेगं 
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं 
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

अर्थ: हे मनोहर, वायुवेग सं चलैत, सब इन्द्री कें वश मे केनिहार, बुद्धिमान मे सर्वश्रेष्ठ। हे वायु पुत्र, हे वानर सेनापति, श्री रामदूत हम सब अहांक शरण मे छी॥

॥ श्री हनुमान चालीसा 

॥ दोहा ॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके
सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥
 
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुँचित केसा॥४॥
 
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेउ साजै॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥
 
बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥८॥
 
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥१०॥
 
लाय सजीवन लखन जियाए।
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥१२॥
 
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥१३॥
 सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥
 
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना।
राम मिलाय राज पद दीह्ना॥१६॥
 
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥१७॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥
 
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥
 
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥२२॥
 
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तै काँपै॥२३
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
 
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥
संकट तै हनुमान छुडावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥
 
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥
 
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥
 
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥
 
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥
 
और देवता चित्त ना धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥
 
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥
 
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥
 
॥ दोहा ॥

पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप॥

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॥ हनुमान आरती ॥

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरवर काँपे।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रभु सदा सहाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥

दे वीरा रघुनाथ पठाये।
लंका जारि सिया सुधि लाये॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥

लंका जारि असुर संहारे।
सियाराम जी के काज सँवारे॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे।
लाये संजिवन प्राण उबारे॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥

पैठि पताल तोरि जमकारे।
अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाईं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥

सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें।
जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥

जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे॥
लंक विध्वंस किये रघुराई।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई॥

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

इति शुभम् 
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