विजय इस्सर केर मैथिली कविता 'नाद ब्रह्म'


एहि ब्रह्मांड मे गुंजित
सदिखन नाद ब्रह्म
आहत अनाहत
जाहि मे मगन झूमैछ पवन
गाबैछ गाछ नाचैछ पात
झरझराइत अछि झरना
समुद्रक हिलकोरैत ज्वार
सब देखैत गौरवे बिहुंसैत
करेज उतान केने ठाढ पहाड़

कखनहुं रंग बिरंगक फूल पर
लोभाइत घुरिआइत भ्रमर
पीबि परागक रस, मदमातल
गुनगुनाइत-गाबैत बसंती प्रेम गीत
गाछक डारि पर बैसल कोइली
कुहुकि करैए प्रेम निवेदन
दइए प्रियतम कें आमंत्रण
 
ई सभ देखि-सुनि 
साधए लगै छी स्वर
करैत छी आलाप-तान
राग-भास मनभावन गान
भासए लगै छी 
स्वरक रसधार मे
षडज ऋषभ गंधार मे
मध्यमा पंचम धैवत निषाद
मंद्र मध्य आ पुनि षडज 
सप्तक तार मे

होइ छै जहन तारतम्य
कंठ स्वर ओहि नाद ब्रह्म सं
तखन भ' जाइ छी ब्रह्मलीन
बिसरि जाइ छी एहि छद्म संसार कें 
मुदा किछु कालक बाद
टूटि जाइए ध्यान, होइए ज्ञान
चलएबाक अछि दुनियादारी
हमरा चाही नोन-तेल
भरि पेट भात दालि सोहरी 
मुदा सत्ते की? नाद सं
ई जगत छै सजीव 
हम ब्रह्म नै, छी मात्र एकटा जीव

(विजय इस्सर मैथिलीक सुपरिचित गीतकार-कवि छथि. हिनक रचना संग्रह 'मोनक चिड़ैया' प्रकाशित अछि. एतय अपने पोथी समीक्षा देखि सकैत छी. हिनक गीत-संगीत केर प्रस्तुति अपने बाजा ऐप पर सेहो सुनि सकै छी.) 
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