मिथिला मे एना मनाओल जाइत अछि दीपोत्सव


मिथिला मे दशमीए सं दीयाबाती जड़ायब शुरू भ' जाइत अछि. धनतेरस सं ओहुना पावनिक शृंगार सन शुरू भ' जाइत अछि. मिथिला मे दीयाबातीक महत्व एहू लेल बेसी अछि जे मैथिली (सिया) श्रीरामक संग चौदह बरखक बनवासक उपरांत अजोध्या आपस आयल छलीह. 

अन्हार पर इजोरियक विजय केर ई पावनि जन-जन सं जुडल अछि. लछमी केर आराधना केर संगहि राति मे कालीपूजा सं मिथिला केर माहौल श्रद्धा सिक्त रहैत अछि. दीयाबातीक लेल अनेकानेक कथा प्रचलित अछि. सोझ शब्द मे कहल जाय त' सुख-समृद्धि ओ आकांक्षा कें नव पाँखि देबय आ अपार हर्खक ओरियान केर पावनि अछि दीयाबाती.

दीयाबाती: मिथिला मे दीपावली - Mithila Me Deepawali

घर-आँगन केर साफ़-सफ़ाइ केर पश्चात गोबर सं नीपल जाइत अछि. ओहुना दीयाबती हेतु घर-आँगन पहिने सं चकाचक कयल गेल रहैत अछि. भगवती घर मे गोसाओन लग अरिपन देल जाइत अछि. कहल जाइत अछि जे आजुक दिन भगवती बहराइ छथि. फेर देवोत्थानक एकादशी दिन घरवास करैत छथि. सांझ होइते घर-दुआरि दीया सं चक-मक करय लगैत अछि. सांझू पहर लोक फटक्का आदि छोड़ैत छथि. हुक्का-लोली सेहो जराओल जाइत अछि, जे भगवती घर सं लोक गामक बाहरी भाग मे पोखरि वा बाध दिस जा फेकैत अछि. लक्ष्मी-गणेशक पूजन सेहो कयल जाइत अछि. 

राति बढ़ने कालीपूजन केर सेहो प्रथा अछि. बंगाल मे दीयाबातीक सांझ मे कालीपूजा प्रमुखता सं मनाओल जाइत अछि. मुदा लोक मिथिला मे दीयाबती केर संगहि लक्ष्मी-गणेश ओ तखन काली पूजन करैत छथि. गाम-गाम काली माय केर प्रतिमा बना पूजन कयल जाइत अछि. जतय काली मंदिर अछि, ओतय एहि दिन फराके माहौल रहैत अछि. बेसी ठाम दीयाबाती सं शुरू भ' पंचदिवसीय काली पूजनोत्सव आयोजित कयल जाइत अछि.
 

गोधन पूजा केर विधान - Godhan or Govardhan Puja

दीयाबाती केर अगिला दिन अर्थात कार्तिक मास केर शुक्ल पक्ष प्रतिपदा कें गोवर्धन पूजा कयल जाइत अछि. एहि दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव सेहो मनाओल जाइत अछि. एहि पावनि केर मिथिलाक लोकजीवन मे विशेष महत्व अछि. एहि पावनि कें ल' कथा ओ मान्यता सेहो जुडल अछि. श्रीकृष्ण ओ गोवर्धन केर कथा प्रसंग सं के' परिचित नहि अछि. 

एहि दिन मिथिला मे माल-जाल केर दुलार होइत अछि. गोधन केर पूजन कयल जाइत अछि. गाय आ बरदक थैर मे गोबर, पिठार ओ सिन्दूर सं गोवर्धन बना पूजा कयल जाइत अछि. मिथिलाक कृषि परम्परा मे पशु केर महत्व बहुत बेसी अछि. 

एहि दिन माल-जाल कें तेल ओ बकेन पीयाओल जाइत छैक. सिंघ मे तेल लगाओल जाइत छैक. गोधन कें पान-सुपारी सेहो देल जाइत छैक. माल-जाल कें नवका नाथ-गरदानी पहिराओल जाइत अछि. चरवाह आ जन-बोनिहार जे कृषि कार्य मे सहयोग करैत छथि, हुनका एहि दिन नओत द' खुआओल जाइत अछि. बहुतो लोक जन-बोनिहार कें सीधा सेहो देइत छथि. 

एहि दिन पहलवानी खेलयबाक सेहो परंपरा रहल अछि. एहि दिन मिथिलाक धीया नवनिया (लवनिया) चिपड़ी पथइ छथि. एही चिपड़ी सं नवान्न केर अन्न उसनय लेल चूल्हा पजाडल जाइत अछि.

यम द्वितीया कें चित्रगुप्त केर पूजन - Yama Dwitiya 

दीयाबातीक दू दिन बाद अर्थात यम द्वितीया कें चित्रगुप्त पूजा कयल जाइत अछि. एहि दिन कलम आ चित्रगुप्त केर पूजन कयल जाइत अछि. प्रचलित कथाक अनुसार चित्रगुप्‍त ब्रह्माक पुत्र छथि. एहि संदर्भ मे एक कथा अछि जे यमराज सृष्टिक आकार बढ़ने सृष्टिक रचनाकार ब्रह्माजी लग पहुँचलाह आ प्राणीक पाप-पुण्य केर लेखा-जोखा रखबा लेल कोनो ठोस बेवस्था कार्बा लेल कहलनि.

यमराज अपना लेल योग्य मंत्रीक व्यवस्था करबाक प्रार्थना कयलनि. ब्रह्माजी यमराज कें हल तकबाक आश्वासन द' समाधि मे चल गेलाह. 11 हजार सालक समाधिक बाद ब्रह्मा जी केर काया सं एक दिव्य पुरुष उत्पन्न भेल. श्यामल वर्ण केर एहि दिव्य पुरुषक कमल सामान नेत्र छल, कान मे कुण्डल, गर मे मुक्तासर, शरीर पर पीताम्बर वस्त्र आ हाथ मे कलम दवात छल. उत्पन्न पुरुष भगवान ब्रह्मा सं अपन नाम आ काज पूछलनि त' ब्रह्मा जी कहलनि, अहां हमर काया सं उत्पन्न भेल छी तें अहां कायस्थ छी. अहां हमर चित्त मे गुप्त छलहुँ तें अहांक नाओ चित्रगुप्‍त होयत. अहां यमलोक जा मनुक्खक पाप-पुण्य केर लेखा तैयार करब. कायस्थ लोकनि चित्रगुप्तक वंशज मानल जाइत छथि.

एहि दिन मिथिला मे कायस्थ लोकनि कलम-दवात संगहि चित्रगुप्त केर प्रतिमा पूजन सेहो करैत छथि. कलम-दवात केर पूजन मे कायस्थ सहित मिथिलाक अन्य वर्णक लोक सेहो भाग लेइत छथि. देश-विदेश मे रहनिहार मैथिल लोकनि ई पावनि मनबैत छथि.

भरदुतिया केर धूम - Bhai Dooj

भरदुतिया कार्तिक मासक शुक्ल पक्ष केर द्वितीया तिथि कें मनाओल जाइत अछि. एकरा यम द्वितीया सेहो कहल जाइत अछि. भरदुतिया मे बहिन भायक ललाट पर पिठार आ सिंदुरक ठोप क' उज्ज्वल भविष्यक कामना करैत अछि. मिथिला मे एहि अवसर पर भाइ उपहार वा नगद देइत अछि. ई पर्व भाइक प्रति बहिनक प्रेम केर सूचक अछि. 

एहि पावनि लेल एकटा कथा सेहो प्रचलित अछि. यम देवता अपन बहिन जमुना कें एही दिन दर्शन देने छलाह. जम महाराज व्यस्तता केर कारणें अपन बहिन सं भेट नहि क' पबैत छलाह. एहि दिन बहिन ठाओ पीढ़ी क' भाइ केर बाट तकैत अछि. मिथिला मे अलग तरहक अरिपन पाडल जाइत अछि. दीयाबाती आ छठि केर बीच मे ई पावनि भेने हर्ख कतेको गुण बढैत अछि.

छठि परमेसरी केर अराधना - Chhath Puja


लोक आस्थाक महान पर्व छठि समूचा भारत-नेपाल मे प्रमुखता सं मनाओल जाइत अछि. ई पावनि सभ धर्मावलम्बी लेल समान महत्व रखैत अछि. दुनू पार मिथिला मे एहि पावनि कें ल' लोक मे अपार आस्था अछि. हिन्दू सहित मुस्लिम ओ सिख समुदायक लोक ई पावनि मनबैत छथि. कातिक शुक्ल पक्षक षष्ठी कें मनाओल जायवला छठि सूर्योपासना केर अनुपम विधि-विधान लेल सेहो प्रचलित अछि. पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्तिक लेल ई पावनि मनाओल जाइत अछि. 

छठ पूजा चारि दिवसीय उत्सव अछि. व्रतधारी लगातार 36 घंटा व्रत रखैत छथि. पहिल दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ केर रूप मे मनाओल जाइत अछि. दोसर दिन कातिक शुक्ल पंचमी कें छठिव्रती दिन भरि उपास क' सांझ मे अन्न ग्रहण करैत छथि, एकरा ‘खरना’ कहल जाइत अछि. तेसर दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी कें दिन मे छठि केर प्रसाद बनाओल जाइत अछि. 


सांझ मे जलकर पर जा सूर्य कें अरघ देल जाइत अछि. चारिम दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी कें भोरे उगैत सूर्य कें अरघ देल जाइत अछि. अंत मे छठिव्रती कांच दूध केर शरबत पी क' आ कनेक प्रसाद खा क' व्रत पूर्ण करैत छथि.

एहि प्रकारें संपूर्ण मिथिला इजोत पसरिते अछि. जीवन कें खुशहाल करबाक आ हर्ष पसारबाक एकटा माहौल सृजित होइछ. एहि सब पाबनि मे आइ-काल्हि आधुनिकताक नाम पर अनेक एहन कृत्य सब होइछ जे अनुचित होइछ. तखन एतेक कहि जे ई सब पाबनि प्राकृतिक निकट जा ओकर मान करबाक, ओकर महत्व बूझबाक, ओकरा सिंचित करबाक हेतु प्रेरित करैत अछि.

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प्रस्तुत आलेख मिथिमीडिया केर MiPrime विभाग द्वारा Samrat Perfumery केर सौजन्य सं प्रकाशित कएल गेल अछि. 
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