बाल कविता: कर बाधा कें चूर-चूर


रोड़ा-खपटा काँट-कूशकेँ देख कतहु नै थमि जो
सत्त बाटपर चलैत-चलैत तूँ नीक बटोही बनि जो

जाहि बाटपर चलैत-चलैत एक पुरुख बनल महापुरुख
ओहि बाटक रज माँथ सटा कूदैत-फानैत तू चलि जो

सकदम भेने नै काज सफल हाथ-पएर चलाबऽ पड़तै
दू ठोप चुआ कऽ घाम सुधा तू जिनगी गमगम कऽ जो

तोरामे छौ शक्ति अपार छिड़िआएल मुदा छौ जहिं-तहिं
शक्ति संचित कऽ डेग बढ़ा लक्ष्य देखि कऽ तन तनि जो

जँ नै भेटतै कतहु बाधा तँ जिनगी निरस, मस्ती कहाँ?
कर बाधाकेँ चूर-चूर तू जिनगीक अर्थ बुझैत जो

— अमित मिश्र
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