दायित्वक प्रति सचेष्ट करैछ मिथिलाक तिल-चाउर


तिला संक्रान्ति मिथिलाक प्रमुख पावनि अछि. एही दिन सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करैत अछि. ई वैदिक उत्सव अछि. एहि पावनिक सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन आ कृषि सं अछि. ई तीनू जिनगीक आधार अछि. प्रकृतिक कारक रूपें सूर्य देव केर आराधना कयल जाइत अछि.

अलग-अलग समाज मे मकर संक्रांतिक पर्व पर अलग-अलग रूप मे तिल, चाउर, दालि एवं गुड़ केर सेवन कयल जाइत अछि. मिथिला मे एहि दिन खिचड़ि, लाइ, चुरलाइ, तिलबा, तिलकुट लोक खाइत अछि. एहि दिन लोक पोखरि मे स्नान करैत छथि आ तत्पश्चात किछु सेवन करैत छथि. नेन्ना-भुटका कें ठंढ मे भोरे स्नान करबाक लेल उत्साहित करैत अभिभावक लोकनि कहैत छथि, जे जतेक बेर डुम्मी काटत ततेक तिलबा भेटतैक. नेन्ना-भुटका कें ई बात बहुत बेसी रोमांचक आ मजेदार लगैत अछि. एहि दिन मैथिल अभिभावक लोकनि अपन धिया-पुता कें तिल-चाउर द' दायित्व निर्वाहक स्वीकारोक्ति लैत छथि. खान-पान आ पुण्य स्नानक बीच मिथिलाक ई विधान पारिवारिक आ सामाजिक जोड़-बन्हन केर सूचक अछि.
एहि दिन पुण्य-स्नान क' ब्राह्मण भोजनक विशेष महत्व अछि. कहल जाइत अछि जे धरतीक पोषण विष्णु करैत छथि आ तिल हुनके सं उत्पन्न भेल अन्न अछि. धरती पर ब्राह्मण कें विष्णु रूप मानल गेल अछि. एहि दिन गरीब कें दान देला सं विशेष पुण्य भेटैत अछि. मिथिला सं बहुतो संख्या मे लोक एहि अवसर पर पुण्य लाभ लेल गंगासागर अबै छथि. एहि दिनक बाट लोक एहू लेल तकैत रहैत अछि जे एहि पावनिक बाद धीरे-धीरे रौद उगब शुरू होइत अछि आ लोक कें भीषण ठंढ सं बचबाक आस मजगूत होइत अछि. ई समय नव फसिलक अछि से लोक मे नव उमंग आ उत्साह रहैत अछि.

— मिथिमीडिया डेस्क (Photo: Google)
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