इति कवि महाप्रकाशक 'जीवन -लीला' !

दाह संस्कारक अजब अनुभव द ' गेलाह प्रिय महाप्रकाश! लोधी रोड विद्युत शवदाह गृह मे अनमन जेना मनुष्यक शरीर कें अग्निक सुपुर्द नहि कएल जाइत अछि, बड़का टा आगिक धधकैत खूजल संदूक मे 'डिपाजिट' क' देल जाइछ. सफर मे बस, रेल बा हवाइ जहाज मे यत्राकाल जेना. बल्कि पार्सल जेकाँ ! 'बस्तु' जेकाँ जमा करू, तकर रशीद लिअ' आ अमुक दिन डेलिवरी ल' लेब... माने महाप्रकाश जीक अस्थि-संचय-कर्म! गाम जेतनि ....
आब किछु होउन. ओना तँ बकौल कवि शकील बदायुनी जी—
" जिनको उठना है वो उठ जाते हैं चुपके से शकील
बाद उनके बज़्म में गिरिया सही मातम सही " 
तुम्हारे लिए इस घड़ी बेसाख्ता याद आई हैं. तो ज़ब्त भी नहीं कर रहा हूँ. तुम मैथिली के (हमरा जनतबे) अकेले कवि हो जिसे उर्दू इत्यादि मे इल्म और तबीअत है. बोलचाल से लेकर ' लिखने ' मे. इस अंदाज़े बयाँ के खतों को अब मै संभाल कर भी कितने दिन रख पाऊँगा ? क्योंकि अब अपना भी तो -"हो चुका एक नीन्द का पूरा सफर....

इति कवि महाप्रकाशक "जीवन -लीला "!
बहुत उच्च साहित्यिक गुण,सहज अनुजत्व सँ भरल दुर्लभ कवि भेलौं महाप्रकाश अहाँ।
आलोचक श्रेष्ठ लोकनि की की कहैत छथि से तँ नहि जानि...मुदा एक बहुत खास 'मोन -वर्ग 'मे अहाँ बहुत दिन जीयब ! युगान्तर...।
सस्नेह,
तुम्हारा-
गुंजन दा 
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