आत्म-चिंतन

जतेक तीव्र गतिएँ
आगू मूहेँ बढ़ब
ततेक तीव्र गतिएँ
पाछू मूहेँ छूटत-
बहुत रास बस्तु-जात,
गति जतेक बेसी होयत
कोनो राजा-दैव भेलापर
क्षतिक मात्रा  सेहो 
ततबे बेसी होयत,
इएह नियम छैक,
एहिना होइत एलैए
होइत रहतै
चिंताक कोनो बात नहि,
हँ, एतेक धरि मोन राखी जे-
गंतव्य सटीक हुअए
गति सुरक्षित हुअए...।

— मिथिलेश कुमार झा
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