विद्यापति सं धन्य मिथिला धन्य मैथिली!

कातिक धवल त्रयोदशी पर विशेष

कातिक मासक इजोरिया पक्षक त्रयोदशी तिथिकेँ विद्यापतिक अवसान दिवसक ठेकान हुनकहि एकटा रचनाक माध्यमसँ सभ केओ अकानति छथि. हुनक जन्म आ' मृत्युक बरखक संबंधमे विद्वानक बीच मतैक्य नहि अछि मुदा जे कोनो शोध आइ धरि सोझाँ आएल अछि ताहिसभक आधारपर मानल जाइछ जे चौदहम शताब्दीक उत्तरार्धसँ पन्द्रहम शताब्दीक पूर्वाध धरि लगभग एक सय बरखधरि विद्यापतिक जीवन काल रहल होयत. कविकोकिल विद्यापतिक कोनो जीवनी उपलब्ध नहि अछि जाहिसँ हुनक जन्म आ' मृत्युक तिथि निजगुत भऽ सकए आ' एहनमे विद्वान लोकनि अपन-अपन व्याख्याक आधारपर हुनक कालनिर्धारण करैत भेटैत छथि मुदा एहि विषयपर मतैक्यक कोनो खास खगता आब बुझना नइ जाइत अछि किएकतऽ जे कविकोकिल अपन रचनाक बदौलति अमर भऽ गेल छथि हुनक जन्म आ' मृत्युक दिन इतिहासकारक अलावे आन ककरो लेल बहुत बेसी महत्व नहि रखैत अछि आ' तैँ हुनकर जन्म-मृत्युक काल-निर्धारणपर चर्च करबासँ नीक जे हुनक सृजनशील पक्षक चिंतन करी आ' विभिन्न संदर्भमे ओकर प्रासंगिकताक मूल्यांकन करी.

तत्कालीन गढ़-बिसफी आ' आजुक बिसफी गामक कविपति विद्यापतिक कतिपय वंशज एक पर एक उद्भट विद्वान भेलाह आ' अदौसँ मिथिलाक राज दरबारमे दरबारी भेलाह. किनको राजपंडित तऽ किनको महामत्तक प्रतिष्ठित पद भेटल. राजपण्डित जयदत्त ठाकुरक पौत्र आ' राजपण्डित गणपति ठाकुरक पुत्र विद्यापति ठाकुर स्वयं मिथिलाक कीर्तिपुरूष महाराज शिवसिंहक दरबारमे मुख्य संधि-विग्रहीक उच्चपदकेँ सुशोभित कएलनि. राजपंडित आ' विद्वत वंशक सपूत विद्यापति मात्र अपन कौलिक परंपराक निर्वाहेटा नहि कएलनि अपितु अपन लोकप्रिय पदावलीक कारणेँ जनकवि सेहो बनि गेलाह. विद्वान लोकनिक मानब छनि जे विद्यापतिक दूटा विवाह छलनि. प्रथम पत्नीसँ दूटा बालक नरपति आ' हरपति एवं दोसर पत्नीसँ एकटा बालक वाचस्पति ठाकुर आ' एकटा पुत्री दुल्लहि छलनि.

ईश अराधना, राजाकेँ मंत्रणा, नारी-पीड़ाक चित्रण, विद्वानहुकेँ मार्गदर्शन, सामाजिक चिंतन, आ' जन-सामान्यकेँ हेतु संस्कार, कुल मिलाकऽ जीवनक समस्त ध्येय हिनक रचनासभमे परिलक्षित होइत अछि. "कलौ चण्डी महेश्वरौ" केँ चरितार्थ करैत शिव-शक्तिक उपासक विद्यापति राधा-कृष्णक श्रृंगार-वर्णनमे सेहो कोनो कोताही नहि रखलनि. ओ' अपन आध्यात्म-दर्शनमे शिव-विष्णुकेँ एकहि शक्तिक दू कला मानैत छलाह. हुनक अनेकानेक नचारी आ' भगवती गीत खासकऽ जय-जय भैरवि..तऽ मिथिला आ'' मैथिलक पहिचान बनिगेल अछि. जौँ जनकविक गप करी तऽ तुलसीदासक ''रामचरित मानस'' आ' सेक्सपीयरक साहित्यो भरिसक ओतेक विद्वानसँ निराखरधरि नहि पहुँच सकल अछि जतेक कविकोकिलक पदावली देश-देशांतरमे आ' करीब पछिला छहसए बरखसँ लोकक ठोर पर चढ़ल आ'
कोंढ़केँ रूचल अछि. जीवनक हरेक अवसरक हेतु ओ संस्कार-परक गीत जाहिसँ समस्त पूर्वी भारत आ' नेपालक क्षेत्रमे लोक-संस्कार एवं लोक-परंपरा उत्तरोत्तर प्रवाहमान रहल, से कविपति विद्यापतिक पदावली आ पछाति कवीन्द्र रवीन्द्रक गीते सँ संभव भेल. कवीन्द्र सेहो विद्यापति-साहित्यक आगाँ सदति नतमस्तक रहलाह. कविशेखर विद्यापतिसँ पूर्व मिथिलाक विद्वानक मध्य मिथक छल जे विद्वतापूर्ण आ' उत्कृष्ट साहित्यिक रचना संस्कृतेटामे संभव भऽ सकैछ, मुदा, कविरंजन विद्यापतिक पदावली एहि मान्यताकेँ ध्वस्तकऽ समकालीन आ' भविष्यक साहित्यकारक लेल एकटा नव बाट प्रशस्त कएलनि. संस्कृतक प्रकाण्ड विद्वान विद्यापति अपन मधुर श्रृंगार-रसक रचनाक कारणेँ 'अभिनव जयदेव' नामसँ सेहो अलंकृत भेलाह. हिनक रचना-शिल्पक प्रभाव मैथिलीक अलावे पूबक चारिटा प्रमुख भाषा यथा बंगाली, ओड़िया, नेपाली, असमिया पर सहजहि देखबामे अबैछ. बांग्लाक आदिभाषा ब्रजबुलि आर किछु नहि मैथिलीए अछि . एहि कारणेँ विद्यापति मात्र मिथिले क्षेत्रमे प्रसिद्ध नहि भेलाह अपितु देश-विदेश मे हिनका प्रतिष्ठा भेटल आ' भारतीय भाषा-साहित्यपर हिनक एकटा बेछप छाप देखबामे अबैछ.कविकोकिल, अभिनव जयदेव, महाकवि, कवि कंठहार, देशावधान, पंचानन, चंपति, विद्यापति चंपई आदि अनेको संबोधनसँ अलंकृत, ईष्टदेव महादेवक प्रति अपार भक्ति-भाव रखनिहार आ' जन-जनमे ज्ञान-दानमे रत महाकविसँ प्रसन्न भऽ स्वयं महादेव हुनक सान्निध्य पएबाक हेतु उगना रूपमे हिनक चाकर बनि अएलाह. जनश्रुतिक अनुसार महाकवि अपन वृद्धावस्थामे समस्त परिजनकेँ बजाय कहलनि जे ओ गंगालाभ करय चाहैत छथि. गंगातट पर जएबाक क्रममे हठात् ओ गंगाघाटसँ करीब दू कोस पहिने अपन यात्रा रोकबाक लेल कहलनि आ' फेर आत्मविश्वाससँ भरल विद्यापति बजलाह जे यदि ओ अपन माए(गंगा)क शरण पएबाक हेतु एतेक दूरक यात्रा कऽ सकैत छथि तऽ की माए अपन संतानक हेतु दू कोस नहि अओतीह? ओ' फेर गंगा आराधनामे लागि गेलाह आ' एहिठाम एकटा पदक रचना कएलनिः


बड़ सुखसार पाओल तुअ तीरे । छोड़इत निकट नयन बह नीरे ।।
करजोरि बिनमओ विमल तरंगे । पुनि दरसन होय पुनमति गंगे ।।
एक अपराध छेमब मोर जानी । परसल माए पाय तुअ पानी ।।
की करब जपतप जोग धेयाने । जनम कृतारथ एकहि सनाने ।।
भनइ विद्यापति समदओं तोही । अंतकाल जनु विसरहुँ मोही ।।


अपन अंत समएक पूर्वाभान भेने महाकवि अपन
पुत्री दुल्लहिकेँ संबोधित करैत एकटा महत्वपूर्ण पदक रचना कएलनि आ' एही पदक आधारपर हुनकर अवसान दिवसक निर्धारण कएल गेल अछिः


दुल्लहि तोर कतय छथि माय । कहुन ओ आबथि एखन नहाय ।।
वृथा बुझथु संसार विलास । पल-पल नाना भौतिक त्रास ।।
माए बाप जओँ सद्गति पाब । सन्नति कहाँ अनुपम सुख आब ।।
विद्यापतिक आयु अवसान । कार्तिक धवल त्रयोदशी जान ।।
 
पतितपावनि गंगा मिथिलाक एहि विभूतिकेँ अपार भक्तिक मान रखलनि आ' अपन धारा बदलि हिनका अपन धारामे
समाहित कएलनि. विद्यापति जाहि स्थानपर अपन देह त्याग कएलनि से वर्तमानमे समस्तीपुर जिलाक मउ वाजितपुर कहबैछ. एहिठाम विद्यापति नगर नामसँ रेलवे स्टेशनक निर्माण सेहो कएल गेल अछि. मिथिलाक एहि कालजयी रचनाकार आ' महान विभूतिकेँ चरण-वंदन करैत कहय चाहबः


महाकविकेँ कोटिशः नमन करी, भरि-भरि शब्दक पुष्पांजलि ।
धन्य मिथिला धन्य मैथिली , जनमलथि जतय विद्यापति ।।


— संतोषी कुमार
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