'खुरचनभाइक कछमच्छी' @ मधुरक मारि

खुरचनभाइक तामस फेर ओहि दिन शृंग चढल छल. हम अपन दलान पर बैसि बांसक लाठी केँ छीलिकऽ चिकन कऽ रहल छलहुँ. कएक दिन सँ ओकरा रौद मे सुखयबाक लेल देने छलहुँ आ तखन फेर सोन रंगक भऽ गेल छल. हल्लुको भेल छल पहिने सँ. ओकर गिरह सभ केँ छीलिकऽ एक रंग कऽ रहल छलहुँ. अहाँ सोचैत होयब जे हम एतेक बूढ भऽ गेल छी जे आब लाठीक जरूरति पडि रहल अछि? नहि...नहि तेहन बात नहि अछि. असल मे गाछी मे फरल आम केँ देखि नहि रहल भेल आ अंततः एकटा खोपडी बना लेने छलहुँ चोर-चुहारक डऽरे. गाम पर रहैत जँ फरल आमक रक्षा नहि कऽ सकब तऽ की करब. ओहुना जिनगी मे किछु तेहन नहि कऽ सकल छी जकर फल सँ बुढाडी मे आनन्द करब मुदा पुरखा सभ जे आमक गाछ रोपि गेल छथि तकर फल तऽ खा सकैत छी ने, ओहो मात्र कने प्रयास सँ. ओना आमो तऽ आब पारे बान्हि कऽ फरैत अछि. तेसर साल जे फरल छल से एहि बेर फरल अछि. सैह सब सोचि खोपडी बन्हने छलहुँ गाछी मे आ आम अगोरबाक लेल राति बिराति जँ गाछी मे रहब तऽ फेर किछु रक्षार्थ तऽ संग मे रहबाक चाही ने, तेँ लाठी बना रहल छलहुँ. की तखने सुगना धरफराइत आयल आ हमरे लग चौकी पर बैसि रहल. ओकरा ओहि अवस्था मे देखि हम पूछि देलियैक-किए धरफराइत अयलह अछि, किछु बात छैक की? ओ कहलक-बात बहुत गंभीर छैक, अहाँक दोस ने जानि ककरा गरिया रहलाह अछि, सेहो हिन्दी मे. जोर-जोर सँ गरैज-गरैज गरिया रहल छथि, ककरो सँ झंझटि भेलनि अछि शाइत. हम सुगना केँ कहलियैक-गरिया रहल छथि, ओहो हिन्दी मे? तखन मे मामिला सही मे गंभीर बुझना जा रहल अछि. हम तखने चक्कू डाँर खोंसि लाठी जस केँ तस छोडि विदा भऽ गेलहुँ भाइ लग. हमरा पाछां-पाछां सुगना सेहो आबि रहल छल। हम झटकारैत अतिशीघ्रे भाइ लग पहुँचलहुँ तऽ सुगनाक बात सय प्रतिशत सत्य निकलल. खुरचन भाइ बिनु नामे लेने ककरो गरिया रहल छलाह...बिखिन-बिखिन.

हुनका देखि हमरा तखन लागल जेना ओ आपा सँ बाहर भऽ गेल छथि. बेधडक हिन्दी मे बजने जा रहल छलाह...ये कर देंगे...वो कर देंगे....जिंदा जला देंगे....सूली मे लटका देंगे. हम हुनका शांत कऽ दलान पर बैसा देलियनि आ कहलियनि कोन काज रहैत अछि गरमयबाक...ओहुना गरमी की कम छैक. अवस्थो केँ कनेक खियाल कयल करू.... ओ ताहि पर कहलनिअवस्था केँ छोडू....ओहिना हम नहि भोकडि रहल छलहुँ...बताह थोडहि ने भऽ गेल छी. कोनो चीजक हद होइत छैक. तखन हमरा हँसी लागि गेल, कहलियनि-अहाँ ककरा हिन्दी मे गरिया रहल छलहुँ? ओ ताहि पर फेर गरम भऽ गेलाह, पुन- जोर सँ बाजि उठलाह-यौ सभ साल टाट लगयबा काल फूलचनमा दू बीत कऽ हमरा धराडी दिस घुसका देल देइत अछि, नहि बाजब तऽ फेर ओ तऽ घरो ढाहि देत आ हमरा मोटरी बान्हि विदा कऽ देत गाम सँ. लगैए जे गाम मे सभ सभकेँ उपटयबाक फिराक मे लागल अछि. कोनो चीजक हद पार भऽ जाइत छैक तखन तऽ फेर.... हम हुनका कहलियनि-अच्छा चुप भऽ जाउ...बातचीत सँ सभ समस्याक निदान संभव छैक. खुरचन भाइ पुनः बाजि उठलाह-रहल बात हिन्दी मे गरिअयबाक तऽ मैथिली अपन सभक मातृभाषा अछि आ ई दुनियाक सभ भाषा सँ बेसी मधुर लगैत अछि हमरा आ एहि भाषा मे ककरो गरिया एकर मधुरता समाप्त नहि करय चाहैत छी. दोसर ओकरा पर हम बिगडल छी आ तेहन स्थिति मे मैथिली मे कहि ओकरा मधुरक मारि नहि मारय चाहैत छलहुँ. ओकरा तऽ जानि बूझिकऽ हिन्दी मे गरिया रहल छलहुँ जे गरतैक तऽ सुधरत. खुरचन भाइक मुख पर क्रोधक साफ झलक छल मुदा तखन हुनक ई बात सुनलाक बाद हमरा बुझबा मे आयल जे भाइक मोन मे मैथिलीक प्रति कतेक प्रेम छनि.

— नवकृष्ण ऐहिक 


Note: मैथिली दैनिक 'मिथिला समाद' मे अगस्त 2008 सं दिसम्बर 2009 धरि दैनिक रूपें प्रकाशित धारावाहिक व्यंग्य 'खुरचनभाइक कछमच्छी' केर एक अंश.

फोटो: साभार गूगल


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