पोथी समीक्षा: नारायण झाक 'अविरल-अविराम

अपन पहिल कविता संग्रह 'प्रतिवादी हम' (2013) केर बाद काव्य लेखन कें अबाध रखैत युवा रचनाकार नारायण झाक दोसर कविता संग्रह (2017) मे प्रकाशित भेल 'अविरल-अविराम'. एहि संग्रह मे कुल सत्तहत्तरि गोट कविता अछि. प्रायः समस्त कविता प्रवाहमय, सहज ओ सरल प्रकृतिक अछि. सामान्य व्यवहारक शब्दावली ओ विन्यास मे वर्तमानक चिंतन एहि संकलनक खास विशेषता अछि.

कवि समय ओ समाजक विभिन्न विडंबना आ कटु सत्य पर कलम चलबैत राज ओ समाजक व्यवस्था कें सुचारू एवं सुव्यवस्थित करबाक आग्रही छथि. जाहि सं समाज ओ सभ्यता अपना लक्ष्य दिस अविरल-अविराम बढ़ैत रहए.

संकलनक पहिल कविता अछि 'इष्टदेवी' जाहि मे कवि हुनका सं अम्लान ओ यशपूर्ण जीवन मंगैत छथि. कविक भावना एतहि स्पष्ट भ' जाइत अछि. एकटा अन्य कविता अछि 'कियै लिखै छी' जाहि मे कवि लिखबाक अपन प्रेरक तत्वक चर्चा करैत कहैत छथि - 
'ककरो बेकलता देखि
ककरो खुशी देखि 
भ' जाइत छी संवेदित 
बेराबेरी अपना भीतर
करै छी समाहित 
...
शब्द बनए लगै अछि
हमरा लेल 
हमर कविता'

मशीन होइत मनुक्ख, मनुक्खक बदलैत सोच-स्वभाव, धर्म स्थल पर क्षुद्र स्वार्थक लक्ष्य, राजनीति, गामक अधोगति, विधवाक मन:स्थिति, बूढ़क स्थिति, बलि-प्रथाक विरोध, भ्रष्टाचार आदि आ अन्य विडंबना कें विषय बना कवि सुन्नर कविता सभ लिखलनि अछि. 

एहि संग्रह मे देश-प्रेम, लोकक नाटकीयता, मशीनीकरण, अंधविश्वास, पर्यावरण, जीवन-दर्शन, मौसम परिवर्तन, भुतही आ गहुमा नदी, भुइकंप आदि विषय सेहो प्रभावी ढ़ंगे कविताक रूपें प्रस्तुत भेल अछि. एहि संकलनक 'आत्माक स्वर' मे एकटा गायक आत्मकथ्य देखू - 
'कनी जे देह मे 
कम छै गुद्दी 
लेबाल अबिते 
भगैत छै ओहि पएरे 
कोना करी प्रार्थना 
हे देव! 
पसिन भ' जाइए आइ
कहुना त' ककरो
जुड़ेतै आत्मा'

ई पांति सभ मनुक्खक संवेदनहीनता पर कसगर व्यंग्य थिक. ओना एहि संकलन मे 'टीस', 'बेपर्द', 'लाज पी चुकल छी', 'प्लास्टिक सर्जरी' आदि किछु आओरो कविता सभ अछि जे व्यंग्य कविता अछि. आ से नीक उसरल छनि. महाकवि लालदास केँ सेहो एकटा कविताक माध्यमे नमन क' कवि पूर्वजक प्रति कृतज्ञ होइत छथि.

वर्तमान मे अन्यायी सभक चलती ओ धर्मव्रती सभक कष्ट देखि कवि भगवानो पर व्यंग्य करैत छथि - 
'कने बचाउ
अपनो इज्जति 
हमर छोड़ू 
अपनहुं प्रतिष्ठा बचा लिअय (प्रतिष्ठा बचाउ)'

गोटे-गोटे कविता मे प्रवाहक कमी, वर्तनीक गलती, कचकुह सन बगए आदि अवश्य छनि. मुदा हमरा संतोष अछि जे अपन पहिल कविता संग्रह सं एहि दोसर संग्रहक कविता मे कवि आगां बढ़लाह अछि. हिनक काव्य लेखन निरंतर निखरि रहल छनि.



जओ देखल जाए त' समाजक प्रति कविक व्यापक दृष्टिकोण छनि. समाजक विभिन्न विडंबना कें कतिया कवि एकटा सुव्यवस्थित ओ उदार समाजक निर्माणक आग्रही छथि. अपन कविताक माध्यमे मानवता कें उन्नत करबाक आकांक्षी छथि.

विषयक विविधता, व्यापक दृष्टिकोण, उदार विचार, सहजता ओ सरलता, नीक प्रस्तुति आदि गुणक कारणे प्रस्तुत संग्रह पठनीय अछि. कवि कें शुभकामना!

पोथीः अविरल-अविराम
विधाः कविता
कवि: नारायण झा 
प्रकाशकः नवारम्भ पटना/मधुबनी
कुलपृष्ठः 112
मोल: 150 टाका

समीक्षा: मिथिलेश कुमार झा

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