पोथी समीक्षा: 'एक मिसिया' पाठक चाही!

मैथिली साहित्यक समक्ष प्रकाशन ओ वितरणक दुरावस्था सँ चिंतित युवा कवि, पेशा सँ पत्रकार आ स्वभावेँ उद्यमी (Entreprenuer) रूपेश त्योंथ व्यवस्था केँ सुधारय लेल खेत चढ़ि एलाह अछि. पोथी प्रकाशन ओ वितरणक समस्या सभक भाँज लगेबाक हेतु मिथिमीडिया प्रकाशन सँ पहिल पोथी 'एक मिसिया' (कविता संग्रह) लए मैथिली पाठकक बजार मे अपन उपस्थिति देलनि अछि.

कुल बत्तीस पृष्ठक ई पोथी आकार मे भलेँ गतगर नहि अछि, मुदा एकर कवि मैथिली कविता क्षेत्र मे बेस गतिगर छथि तकर आश्वासन पाठक लोकनि केँ अवस्स हेतनि. पहिल कविता मे 'सरस्वती-वंदना' सँ जखन ज्ञान-दृष्टि भेटैत छनि तऽ जनारण्यक गर्दमसान ओ यंत्रवत जीवन सँ उत्सर्जित धुआँ मे सभ सँ पहिने 'विद्यापतिक आँखि मे नोर' देखाइत छनि. कवि कविपति सँ सहजहिँ जिज्ञास कऽ बैसैत छथि-

'....की मामिला छैक? / अहाँक नेत्र सजल किएक ?
की अपनेक यशोगानमे कोनो कोताही ?
ढ़ेर उपलब्धि सभ अछि, आब कते चाही ?'

आ फेर कवि केँ महाकवि सँ अपन प्रश्नक जे उत्तर भेटैत छनि ताहि पर आइ हरेक मैथिल केँ कान-बात देब आवश्यक अछि -

'आम मैथिल जाबे बूझत नहि मैथिलीक मोल / ताबे की हेतऽ पीटने ढ़ोल?
ई भेलऽ जे जड़ि ठूँठ आ फुनगी हरियर / मुरही कम आ घुघनी झलगर
खाली हमरे गुण गेने किछु हेतऽ थोड़?'

विद्यापति स्मृति-पर्वक नाम पर सगरो मचल रमझौआ मे गजबहीर भेल मैथिल केँ महतबार रूपेश त्योंथ अपन चोखगर कलमक नोक सँ आँकुस दऽ कऽ सोझ बाट पर आनय चाहैत छथि.

रूपेशजीक काव्य-दृष्टि फेर 'खेतक बड़का आरि पर' सँ मिथिलाक ग्रामीण सौन्दर्यक दर्शन करैत अछि. एहि क्रम मे समाजक रग-रग मे व्याप्त अव्यवस्था, आतंक, अपसंस्कृति आदि देखि अजगुत लगैत छनि. लोकक बदलल चालि-ढालि एवं ओकर दुर्दशा देखि दुखद आश्चर्य होइत छनि. धरती पर पसरल दानवी तांडव सँ त्राण हेतु हिनकर कलम शक्तिक कामनाक संग ईश-अराधना मे जुटि जाइछ. 

लोक जागरण हेतु श्रद्धा-दीप जरबैत काल संभवतः 'यदा-यदा हि धर्मस्य....' मोन पड़ैत छनि-

'दैत्यक तांडवसँ उबार, करी हम वा अपने चलि आउ
जरा रहल छी श्रद्धा-दीप, आब जुनि बाट तकाउ'

एहि 'जरा रहल छी श्रद्धा-दीप' शीर्षक कविता मे कवि अपन गप्प कुंडलियाक शैली मे कहबाक प्रयास कएलनि अछि मुदा, व्याकरणक अनुपालनक अभाव मे प्रवाह-भंग सहजहिँ प्रतीत होइत अछि.

संग्रहक अगिला किछु कविता सभ यथा- 'जागू आब', 'बूथ कैप्चरिंग', 'तहिया से नहि बूझल छल', 'हम छी आजुक नेता', 'नहि बदलत बात छकरला सँ', 'कुर्सी पर अछि कुकुर बैसल', 'जंगल दिस', 'चुनाव-चक्र', 'साइठम बरखी आजादी केर' आदि केर माध्यमे कवि स्वतंत्रताक बाद भारतीय समाज मे आयल सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन, ओ तकरा पृष्ठभूमि मे भय, भूख ओ भ्रष्टाचारक बढ़ोत्तरीक संगहि कालक्रमे बढ़ैत अनेकानेक सामाजिक विसंगति दिस लोकक ध्यान आकर्षित करबाक सफल प्रयास कएने छथि. लोकतांत्रिक व्यवस्थाक कतेको स्याह पक्ष पर अपन कवि-दृष्टिक इजोत देलनि अछि.

'जंगल दिस', आ 'कॉलेज देखलक बौआ' कविताक माध्यमे कवि आधुनिकताक नाम पर अपसंस्कृतिक जे पसार भऽ रहल अछि ताहि दिस समाज केँ ध्यान देबाक हेतु प्रेरित करैत छथि. 'ब्रह्माक चिन्ता' ओ 'मनुक्ख तोरा पर थू' शीर्षक कविताक माध्यमे कवि मनुक्खक नैतिक ओ चारित्रिक पतन पर क्रमशः चिंता ओ क्रोध प्रकट कएलनि अछि.

ओना पतितक गणना मानवक संग किन्नहुँ नहि कएल जेबाक चाही. 'मनभरनि डूबि मरलैए' आ 'आयल फेरो समय लगनक' दहेज-प्रथा'क विद्रूपता केँ समाजक सोझाँ एक बेर फेर उजागर करैत अछि. 'खायब की?' शीर्षक कविता मे अभाव ओ महगी सँ त्रस्त जिनगीक व्यथा केँ मार्मिक ढ़ंग सँ परसल गेल अछि.

रौदी-दाही सँ त्रस्त मिथिलाक आमजन आइ रोजी-रोजगारक खोज मे अपन माटि-पानि केँ त्यागि देशक दोसर-प्रदेश जेबाक हेतु विवश छथि. मुदा, मैथिलक ई विवशता प्रदेश मे उपहासक कारण बनि जाइछ. अपनहि देश मे कट्टर-क्षेत्रवादीक घृणा सहए परैत छैक. 'क्षमा प्रार्थी छी' शीर्षक कविता मे कवि एहि क्षेत्रवादी सभक राष्ट्रहित मे विनम्र विरोध करैत छथि संगहि 'खेली सप्पत जा भुइयाँ थान' शीर्षक कविता मे शपथ लैत छथि जे अपन अग्रिम पिढ़ी केँ किन्नहु आन देश नहि जाय देताह-

'भूखे रही वा मरि जाइ, देबै ने जाइ ओकरा देश आन'

विकासक कंटक-अवरुद्ध बाट केँ साफ करबा निमित्त 'क्रांतिक पुकार' करैत छथि. जिनगीक बीसम वसन्तपर आबि देश-समाजक प्रति कर्तव्यनिर्वाहक संकल्प लैत छथि. फेर खून-पसेनाक कमाइ सँ जे 'एक मिसिया' संतोष भेटैत छनि तकर आह्लाद ठोरक मुसकी बनि सहजहिँ छिटकि उठैत अछि आ कवि 'होली मे' प्रेम रंग मे रंगि जाइत छथि.

कवि रूपेश त्योंथ 'नवकृष्ण ऐहिक' नाम सँ व्यंग्य ओ आलेख लिखैत छथि. तेँ हिनकर कविता सभ सेहो व्यंगक बोर सँ सराबोर रहैत छनि. खनहि गुदगुदबैत अछि तऽ खनहि चुटदऽ बिन्ह लैत छथि. मिथिमीडिया पब्लिकेशन्स द्वारा प्रकाशित एहि पहिल पोथीक दाम मात्र बीस टाका राखल गेल अछि. मैथिलीक पाठक संख्या मे बढ़ोत्तरी ओ मैथिली'क लोकप्रियता केँ आर उच्चता देबाक हेतु कवि ओ प्रकाशकक ई 'एक मिसिया' प्रयास अत्यंत सराहनीय अछि'.

अंत मे एतबे एतबे कहब जे- एक मिसिया पाठक चाही.

पोथी : एक मिसिया (कविता संग्रह)
लेखक : रूपेश त्योंथ 
प्रकाशक : मिथिमीडिया पब्लिकेशन्स 
प्रकाशन वर्ष : 2013
मोल : 20 टाका

समीक्षाः चन्दन कुमार झा 

साभार: मिथिला दर्शन 


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