जनसरोकार सं जुड़ल आंदोलन जरूरी!

मिथिला मे मिथिला-मैथिली-मैथिल लेल जे कोनो संघर्ष एखन धरि भेल अछि, ओहि मे सभ सं बेसी साहित्यकारेक भागीदारी देखल गेल अछि. लोकनेता आ'कि आम जनता कहियो मूल आंदोलन वा संघर्ष (किएक तऽ आंदोलन शाइत भेबे नहि केलैए एखन धरि कोनो) सं नहि जोड़ल गेल जकर नतीजा छै जे आइ धरि अधिकतर मांग कें सत्ता द्वारा ठोकराओल गेलै, संघर्ष अपन मूल उद्देश्य सँ भटकैत रहल आ' संस्था सभ पारिवारिक बनि क' रहि गेल अछि. 

दुष्प्रभाव एहन पड़ल छै समाज पर जे आमजन आंदोलनकारी सभ कें चाटुकार सँ बेसी किछु नहि बुझैत छथि. जँ कियो कत्तौ मैथिल अस्मिताक रक्षार्थ कोनो तरहक नव कार्यक्रम ठनैत छथि तऽ ओहि मे लोक के व्यवसाय सँ बेसी किछु नहि देखाइ छै. 

एहि दुर्गतिक लेल मूल रूप सं दू टा बात जिम्मेदार छै. पहिल जे जखन सत्ता समाजक उच्चवर्गक हाथ मे रहै तखन ओ कतिआएल आ' पछुआएल वर्गक लोक के उत्थानक लेल कोनो उल्लेखनीय काज नहि केलक. सभ दिन ओहि उपेक्षित वर्ग कें जोन-चाकर बना खटबैत रहल. ओकर शोषण करैत रहल.

एहि समय मे मिथिला मे सामंतवादी सोचक प्रसार तेहन ने भेल जे एखनो धरि ई अधिकांश लोकक पछोड़ नहि छोड़लक अछि. स्पष्ट छै जे एहि सँ मिथिलाक विकास अवरोधित भेलै. लोक मे वैमनस्यता बढ़लै आ क्रमशः उपेक्षित वर्ग मे प्रतिशोधक बीजारोपण केलक.

फेरो जखन ई उपेक्षित समाज एकत्रित भेलै आ' सत्ता हाथ लगलै तऽ एहू समयक राजनेता सभ लग प्रायः आमजनताक दुख-दर्द सँ कोनो सरोकारे नहि रहलै. कमोबेस ओहो सभ अपन पूर्ववर्तीक नकले केलक आ' समाज कें विभिन्न वर्ग मे बाँटि सत्तासीन रहबाक जोगार करैत रहल अछि. ओम्हर सत्ताच्यूत भेल सामंतवादी लोकक जुन्ना तऽ जड़ि गेलै मुदा ऐँठन एखनो नहि गलैए. एहना मे फाँक-फाँक मे बँटल समाज ककरो आश्चर्यचकित नहि करैत अछि आब, हँ एहि बाँटल समाज कें चुचकारि-पुचकारि सभ अपन-अपन स्वार्थ सिद्धि मे लागि गेल चाहे ओ अगरा वर्गक प्रतिनीधि हो किंवा पिछड़ा वर्गक.

शासन-प्रशासनक सहयोग सँ निराश आमजन सेहो एहना मे उदासीन भऽ अपन-अपन रोजी-रोजगार कें ईष्ट बुझि दहोदिस छिड़िआय लागल. फलस्वरूप, खण्ड-खण्ड भेल मैथिल समाज दिनानुदिन कमजोर होइत जा रहल अछि. एखनहुँ मैथिली आंदोलनक सरन अधिकांशतः साहित्यकारे वर्ग टेकने छथि वा कियो एनाहियो कहि सकैत अछि जे सरन टेकबाक भौन केने छथि. मैथिली साहित्यकारक विपन्नता आ गुटबाजी क्रमशः हुनकर सभक संघर्षक विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगबैत रहल अछि. आ' जखने अपने घर मे ककरो मोजर नहि रहतै तखन दुनियाक लोक कतऽ से ओकरा मोजर देतै. तइँ ई साहित्यकार आंदोलनकारी सभ सभदिन अपन प्रयास मे विफल होइत रहलाह अछि.

आंदोलन सभक दुर्गतिक दोसर कारण अछि जे एखन धरि जे कोनो आंदोलन चलाओल गेल अछि ओकर मूल उद्देश्य, ओहि सँ समाज कें होइ बला फायदा आ' नहि भेला पर होइबला नोकसान, आ आंदोलन विस्तृत रूपरेखा आइधरि कहियो आमजनताक सोँझा नहि राखल गेल वा बेसी काल एहि सभ पर समग्र रूपे आपस मे चर्चा-परिचर्चा नहि कराओल गेल आ' बेसीकाल हरबड़िए मे निर्णय लऽ किछु दसेक लोक आंदोलन ठानि दैत छथि. फेर यदि सामान्य नागरिक अपना कें एकात बुझैत अछि तऽ ताहि मे ओकर कोन दोष छै.

जहिना कारण सभ स्पष्ट छै तहिना एकर समाधानो एकदम स्पष्ट छै. कोनो आंदोलन तखने सफल होयत जखन नेतृत्वकर्ता सभ अपन सामंती सोच, आपसी द्वेशक त्याग करताह, समाजक सभवर्गक लोक कें ओहि आंदोलन सँ जोड़ताह आ' आंदोलन मूल उद्देश्यक प्राप्ति हेतु ठोस नीति बना ओकरा आमजनक सरोकार सँ जोड़ताह.  

— चंदन कुमार झा

#पेटारमेसं 

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