कुचक्रीए जोलही मैथिलीकें उर्दूक बोली कहतैक

एम्हर किछु दिनसं सोशल साइट फेसबुक पर 'एमजे वारसी' केर ओ शोध आ रिपोर्ट पर खूब चर्चा भेल, जाहिमे मिथिलाक मुसलमान समुदाय द्वारा बाजल जाएबला भाखाकें मैथिलीक बोली नहि कहि उर्दूक बोली कहल गेल अछि. एही पर भाखाकर्मी कृष्णदेव झा केर टिप्पणी —
 
कोनो भाषा हेतु किछु आवश्यक शर्त होइछ:-
(1) ओकर मानक स्वरूप (2) ओकर व्याकरण (3) लिखित साहित्य
किन्तु भाषाक विपरीत बोलीमे वैयाकरणीय प्रतिबन्ध नै होइत छै. श्रोता बूझि जाय; वक्ताक मात्र एतबे उद्देश्य रहैत छैक. व्यवहृत भाषामे ओकर मूल स्वरूपमे बहुशः आयातित (विदेशज) शब्द अथवा आवश्यकतानुसार गढल गेल शब्दक प्रयोग सुगम संप्रेषण हेतु स्थानीय जन द्वारा होइत आयल अछि. किन्तु एहिमे मूल भाषाक आत्माक जीवंतताक सहज आभास होइत रहैत छैक. बोलीक लिखित साहित्य नै होइत छैक. एहिमे कोनो गीत/गाथा लोक समूह द्वारा गढल जाइत छैक. तें एकरा लोकसाहित्य कहल गेल अछि.

मैथिली भाषाक सेहो विभिन्न आंचलिक स्वरूप छैक जे विभिन्न जाति आ धर्मावलम्बी द्वारा अस्तित्वमे आयल अछि. निहितार्थ ई जे मैथिलीक बहुतो बोली छैक जाहि मे सँ एक अछि "जोलही मैथिली". एकर उल्लेख सबसँ पहिने डा० ग्रियर्सन कयने छलाह.

मिथिलाक मुसलमान विदेशसँ नहिं आयल छथि तें ई कहब जे उर्दू पर मैथिलीक प्रभाव परल; ककरो हास्यास्पद बुझेतै. मिथिलाक समस्त मुसलमान धर्मान्तरित छथि किन्तु मुस्लिम धर्म ग्रन्थक अध्ययन हेतु अरबी फारसीक ज्ञान प्राप्त केलनि आ एहि भाषाक शब्दक प्रयोग मुसलमान लोकनि मैथिलीमे करय लगलाह. एहि तरहे एक विशेष वर्गमे मैथिलीक रुप बदलल. अत: भाषाक ई नव रूप मैथिलीक बोली भेलै, जकरा "जोलही मैथिली" कहल गेल. तें कोनो अज्ञानी वा कुचक्रीये जोलही मैथिलीकें उर्दूक बोली कहतैक.
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