पत्रमे इतिहास: सन्दर्भ किरणजीक पत्र

मुट्ठीमे दुनियाक अएबासँ पहिने व्यक्तिगत सम्पर्क एवं संवादक एक मात्र माध्यम पत्राचार छल. एही माध्यमसँ लोकक जिज्ञासा शान्त होइत छलैक. लोक अपन इष्ट-अपेक्षित, एवं परिचित वा ओहनो व्यक्तिसँ पत्राचार द्वारा सम्पर्क स्थापित कए लैत छल, जनिकासँ कहिओ भेंट वा परिचय नहि रहैत छलनि. एहि माध्यमसँ स्थिति वा घटनाविशेषक प्रसंग पत्रलेखकक विचारक जनतब सम्बोधित व्यक्तिकें भए जाइत छलनि. परामर्श एवं मार्ग-दर्शनक माध्यम सेहो पत्राचारे छल. अपनासँ श्रेष्ठकें सम्बोधित रहौक कि कनिष्ठकें - व्यक्तिगत संस्पर्शसँ रहित नहि होइत छल आ’ ने औचित्यक त्याग कएल जाइत छलैक. कहि सकैत छी, वैचारिक मत-भिन्नता रहितहुँ पत्रक भाषा असंयत नहि होइत छल. ओ अनादर वा अहंभावक दुर्गन्धिसँ सदा मुक्त रहैत छल. दौत्य-सम्बन्धक बनब आ’ बिगड़बमे प्रयुक्त शब्दक कतेक महत्त्व छैक, ककरहुसँ छपित नहि अछि. प्रायः एहनहि स्थितिमे ‘पेनफ्रेंड’ शब्द गढाएल होएत.

मुदा मुट्ठीमे दुनिया आबि गेलासँ एक ‘फेसबुकिआ’ वर्ग जन्म लेलक अछि. सामाजिक सक्रियतासँ सर्वथा असम्पृक्त, कोठलीमे बन्द, अहंभावक दोलापर उधिआइत, कतेको फेसबुकिआ बैसले-बैसल तीनू लोक नापि लेबए चाहैत अछि. चाम ततेक मोट जे सामनेक कोठलीमे अकस्मात भेल कन्नारोहटसँ अविचलित एवं निफिकिर रहैत अछि. मोनमे जे किछु अबैत छैक, दकचि लैत अछि. शब्दक अमिति शक्तिसँ अनचिनहार किछु फेसबुकिआ एहू तथ्यसँ अपरिचित अछि जे 'greater the seperation, greater the artist' .सृजनात्मक उत्कर्षक आधार थिक. किछु फेसबुकिआ सहस्रबाहु बनल अछि. जाहि ग्रामीण क्षेत्रमे एहन सुविधा सुलभ नहि छैक, ततहुक निवासीक नामपर टपाटप टिपैत रहैत अछि. एहिसँ साहित्यहुक क्षेत्रमे ‘क्वैक’क प्रवेश भए गेल अछि. एहि क्वैकक समक्ष निदानक एकहि टा उपाय छैक - ‘सहितानाम् भावः साहित्यः’क युगपरीक्षित सत्यक परित्याग करैत सभ प्रकारक औचित्यसँ परहेज, जेना चीनीक रोगीकें मिष्ठान्नसँ परहेज. पत्राचारमे जे सामाजिक मर्यादा रहैत छल, साहित्यिक औचित्यक पालनक प्रति पत्रलेखकमे जे सतर्कता रहैत छल, सम्बोध्यसँ साक्षात सम्पर्क स्थापित कए अपन विचार प्रस्तुत करैत पत्र-साहित्यक निर्माणक जे सुदीर्घ परिपाटी बनल छल, से सब ध्वस्त होएबाक कनगीपर अछि. एहिसँ पत्र-पत्रिकाक पाठकीय-पत्र सेहो प्रभावित भेल अछि. प्रकाशित रचना नीक, की बेजाए? तकरो सूचना सम्पादककें फोनिआकें देल जाइत छनि. सम्पादक ने पाठकक विचार छापि पबैत छथि आ’ ने लेखक अपन रचनाक प्रसंग पाठकीय प्रतिक्रियासँ लाभान्वित होएबाक अवसर पबैत छथि. साहित्यक एक महत्त्वपूर्ण एवं इतिहासक स्रोत सुखा गेल वा सुखेबापर अछि.

विज्ञपाठककें स्मरण होएतनि, 1978 ई मे कर्पूरी ठाकुरक नेतृत्वक सरकार बिहारमे छल. स्कूलक पाठ्यक्रमसँ मैथिली हटा देल गेल छलैक. प्रबल जन आन्दोलनक उपरान्त मैथिली पुनः पाठ्यक्रममे सम्मिलित भेल. मैथिलीक कृती रचनाकार डा. कांचीनाथ झा ‘किरण’ (01 दिसम्बर1906-09 अप्रैल,1989)कें ओहि अवधिमे हम एक पत्र लिखने छलिअनि. तकरहि उतारा थिक प्रस्तुत पत्र (18 सितम्बर, 1978). साहित्यक एक विधा, पत्र-साहित्यमे कोना इतिहास रहैत अछि, पत्रलेखकक व्यक्तित्व एवं आशा-आकांक्षा कोना झलकैत अछि, किरणजीक पत्रसँ स्पष्ट होएत. दोसर, जे भाषा-साहित्य एवं संस्कृतिक प्रचार-प्रसार एवं संरक्षणक लेल मात्र रचनात्मक सक्रियता पर्याप्त नहि अछि, रचनाकारक सामाजिक सक्रियता सेहो ओहिना अपेक्षित अछि, सेहो स्पष्ट होएत.

— डा. रमानन्द झा 'रमण'

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किरणजीक पत्र -

आयुष्मान श्री रमण जी,
शुभाशीष

अहाँक 19 अगस्त 1978कें लिखल खत पौलहुँ. करपूरी काण्डमे व्यस्त रहैत छी, तैं विलम्ब भेल. दौड़बड़हा कऽ दरभ्ंगामे मैथिली संघर्ष समिति बनौलहुँ अछि. संयोगबस तदर्थे आयोजित मीटिंगमे, श्रीयुत सुमनजी दरभंगा आबि गेल रहथि, अतः उपस्थित भेलाह. तदनु हुनक काय्र्य कलाप भऽ रहल छनि जकरा महत्त्व देबय पड़त. आन्दोलन ओ संघर्षमे दरभंगा - अपन भाग पूरा करत से आशा अछि, तदर्थ हम इलाकाक गाम-गाम घूमि रहल छी. शरीर तँ बुढ़ा गेले अछि. नहि जानि - उजान, कनकपुर आदिक सभाक समाचार एखन धरि ‘आर्यावर्त’ ओ ‘मिहिर’मे नहि कियैक आयल.

15कें मनीगाछीमे सभा कयल. ई क्रम चलैत रहत. चेतना समिति राजधानीक संस्था थिक. ओकरा सामथ्र्य बड़ छैक. जँ करय चाहय तँ की नहि कय सकैछ! परंच हम तँ ओकर ने तीनमे छी, ने तेरहमे. रजत जयन्ती मनौत तदर्थ सुझाबक लेल दरभंगामे श्रीअमरजीकें पत्र आयल छनि, से ओ कहलनि. मैथिली एकादमी कोनो सेमिनार करत, ताहिमे उपस्थित होयबाक निमन्त्रण हुनका आयल छनि, सेहो कहलनि. हमर नाम तँ जीवनक आरम्भहिसँ ‘राजभूषित-राजसम्बद्ध संस्थाक लेल अछोप छल, वहिष्कृत छल. से एखनहु रहल. तैं हमर दृष्टि ओमहर जाइतो नहि अछि.

1930 इ. मे मैथिलीक लेल कोनो संस्था नहि छल. मैथिली साहित्य परिषद, दरभंगाक स्थापना नामक लेल 1931 मे सुलतानगंजमे भेल. 1932 मे दरभंगा आएल. मुदा हमरा कनेको हिचक नहि भेल, मैथिलीक आन्दोलन आरम्भ करबामे. जन (छात्र)क संगठने कय बढ़ि चलल रही. आत्मा हमर ओएह अछि. सफलता भेटओ वा नहि लड़ैत मरि जायब, से निश्चय. हँ, प्रो. श्री आनन्द बाबूक संयोजकत्वमे मैथिली रक्षा समितिक समाचार पढ़ि आत्मा बलिष्ठ भेल. ओ हमरा चिन्हैत छथि. हमर संग प्रचारमे संग देने छथि, ते ँ हमर उक्ति हुनका कहि देबनि, यदि हमर बुत्तै कोनो काज एहि सम्बन्धक सम्भव बूझि पड़नि तँ कहथि. कर्पूरी काण्डमे व्यस्त रहबाक कारणे - प्राचीन पत्र-पत्रिका देखि कोनो सुझाव ‘कथा संग्रह’क लेल नहि दऽ सकलहुँ.

ओकर अवधि 1932 इ. नहि राखि, स्वाधीनतासँ पूर्व राखी तँ हमरा जनैत नीक होयत. 1932 इ. मे प्रकाशित हमर चन्द्रग्रहण काजक होयत? पत्रक लेल धन्यवाद. कमसँ कम अहाँकें तँ हम मनमे छी! बड़ उत्साहक बात हमर हेतु.

शुभाकांक्षी
कांचीनाथ 
18.9.1978 
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