कृतिक आलोचना हो कृतिकारक नहि : शेफालिका वर्मा

मैथिलीक प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.शेफालिका वर्मा सं चन्दन कुमार झा द्वारा लेल गेल साक्षात्कारक प्रमुख अंश—


अहाँक साहित्य-यात्रा कहिया आ' कोना आरंभ भेल? अपने कोन-कोन भाषामे लिखैत छी तथा प्राथमिकता कोन भाषाकेँ देइत छियैक?
सांच त’ ई अछि जे हम हिंदीक विद्यार्थी छी. बाल्यकाले स' हिंदीमे कविता-कथा लिखैत रही आ चंदामामा, बालक, चुन्नुमुन्नू आदि पत्रिकामे छपैत रही. मैथिली लिखबाक भाषा छी नै जनैत रही. हं, हमर पापा अंग्रेजक जमाना केर मजिस्ट्रेट छलाह. घरमे मैथिली छोड़ि अन्य भाषा बजबाक सख्त मनाही छल. हम दस भाइ- बहिनीक ह्रदयमे माता, मातृभूमि आ मातृभाषा केर गरिमा पापा भरि देने छ्लाह . घरमे पापाक बड़का पुस्तकालय छल, कारण पापा श्री ब्रजेश्वर मल्लिक स्वयम साहित्यकार छलाह . हुनक ‘कोसी गीत’ नदी साहित्यपर, विश्वमे नाम केने अछि. तैँ शरद, बंकिम, अज्ञेयक संग हम बेदरा स' जवान भेलहुं फेर, अमृता, महादेवी, जैनेन्द्रक संगे मोन कें रंगैत रहलहुं. हम सब गोलकपुर, पटना मे रहैत छलहुं. हरिमोहन झा चाचा जी हमर पापाक अन्यतम संगी. प्रायः रोज साँझ हुनका संगे कविगोष्ठी होइत छल. हुनके संसर्ग मे हम बुझलहुँ जे मैथिली लिखय-पढय बला भाषा सेहो थीक. 15 बरीख मे ब्याह भ' गेल, ठीक मेट्रिक पास केलाक उपरांत. बड्ड भावुक आ हृदय-जीवी पति ....ब्याह स' पहिने हमर पतिदेव श्री ललन कुमार वर्मा जीक दोस्त छलाह श्री रामदेव झा जी. ओहि समयमे मैथिली भाषा मे महिला लेखिका नहि केर बराबर छलीह. रामदेव जी केर आग्रह पर वर्मा जी हमरा मैथिली मे लिखबा लेल प्रेरित केलनि. तखन हम आइ.ए. केर विद्यार्थी रही आ वर्माजी तेसर वर्ष पटना साइंस कॉलेज मे रहथि. 1961 या 62 मे हमर प्रथम कविता ‘पावस प्रतीक्षा’ मिथिला मिहिर मे छपल. ओही आस-पास वैदेही मे झहरैत नोर आ बिजुकैत ठोर, आकाशदीप आदि कथा वैदेही मे छपल ..किन्तु तकर बाद हम पाँछा घुरि कें नै तकलहुँ ...70-80 केर दशक हमर साहित्यिक स्वर्ण युग छल. शायदे कोनो पत्रिका, अंक होयत जाहि मे हम नै छपैत रही. हम हिंदी मे, अंग्रेजी मे सेहो लिखैत छी मुदा नै के बराबर. हिंदी मे एकटा किताब 'ठहरे हुए पल', अंग्रेजी मे एकटा पोथी प्रेस मे अछि ..’सो आइ होप' मैथिली मे 10-12 स' उपर पोथी छपल अछि / छपि रहल अछि.
कवि सम्मेलन केर मंच पर सुमनजी, मणिपद्म, किसुनजी, मिहिरजी, रवीन्द्र -महेंद्र, आरसी प्रसाद सिंह, मौन, अमरजी, रामदेवजी, बिदितजी, सरसजी, बुद्धिनाथ मिश्र, वीरेन्द्र मल्लिक, रामलोचन ठाकुर, गंगेश गुंजन, लक्ष्मण झा ‘सागर’आदि मूर्धन्य कवि लोकनिक संग हमर जीवन मैथिलीमय भ' गेल. मैथिली हमर साँस-साँस मे बैस गेल.
उड़ीसा मे हम पूर्वांचलीय भाषापर भेल कोनो सम्मेलन मे मैथिली दिससँ एसगर गेल रही. स्पैरो, मुंबई द्वारा आयोजित अखिल भारतीय सर्व भाषा महिला लेखिका मे मैथिलीसँ असगरे हम छलहुं.  इंग्लैंड मे मैथिल समाजक समारोह मे मुख्य अतिथि भ' गेल छलहुं. सब ठाम हमरा मैथिली गौरवान्वित करैत रहलीह.

अपन रचना संसारकेँ समाजसँ जोड़ब बेसी कठिन बुझाइत अछि कि प्रकृतिसँ ? सामाजिक सरोकार आ' प्रकृति वर्णनमे बेसी महत्वपूर्ण कथी ?
कोनो साहित्य मनुख कें मनुख सं जोडैत छैक. आइ समाज मे पसरल विश्रृंखलता, अराजकता, बेकारी, महँगी आदि सँ मनुख टुटि गेल अछि आ टुटि रहल छैक ओकर व्यक्तित्व. वस्तुतः सोझ सपाट रास्ता जकां आजुक कथा, कथाकार सँ कथाकार धरि पहुँचैत अछि. जकरा पर कथा लिखल जायत अछि, जकर मानसिकता ओढ़ि भाव रचल जायत अछि ओहि मनुख सँ कथा कविता केर कोनो सरोकार नै रहैत छैक. कोनो खेतिहर बोनिहार लग, कोनो दहेज़ लेबय वाला सासु-ससुर लग वा कि निम्न वर्ग लग ओ कथा नै पहुँचैत अछि. कथा-कविता केर धार उपरे- उपरे प्रवाहित भ' जायत अछि. समाज सं हम तन सं अलग मोन सं अलग भ' नहि लडैत छी. सामाजिक सरोकारक अर्थ भेल जे समाज सं सरोकार बनाक’ राखब, ओकर समस्याक निदान सोचबा लेल ओकरा चिंतन, मनन करय पडैत छैक.
एकटा आर बात जे हमर शोध रहल, आजुक युवा मैथिली पढ़’ लेल नै चाहैत छथि, हुनका लेल मैथिली भाषा बड्ड क्लिष्ट होइत छैक. हम कतेक बेर एही लेल मीटिंग सब मे कहने छी- मैथिली भाषा कें सहज, सरल आ बोधगम्य बनाओल जाय, जाहिसँ आबयवाला प्रत्येक पीढ़ी मे पाठक वर्ग कें हेंज तैयार भ' जाय, मुदा, एहि बात पर सभ चुप अछि. प्रश्न ई छैक जे हम साहित्य सृजन मे एतेक विकसित भ' रहल छी किन्तु हमर पाठक नगण्य किएक छथि? साहित्यकारक कृति साहित्यकारे टा पढैत छथि बस्स ... इति .... एहि दिशा मे हम युवा साहित्यकार लोकनि सं आग्रह करब जे ओ पाठक वर्ग तैयार करथि. हम जखन लिखय लगलौँ त’ देखलहुं जे ‘भ' गेल’ ‘ चलि गेलाह’, आदि कें भाषा बुझल जायत छल. दरभंगा केर मैथिली. हमरा मोनमे ज्वारि उठल.. तखन हम सब जे सहरसा-पुरनिया मे बजैत छी-हे रे, चैल गेलै ..तों कते जाय छीही,....एही तरहक भाषा कें साहित्य मे मोजर नै छल. तखन हम अपन कथा ‘करिया मेघ गोरकी बिजुरी’ मे एही भाषा कें रखलहुं  जे ‘आखर” मे छपल छल.. एखन धरि लोकप्रिय अछि. आब त’ सब ठामक भाषा साहित्य मे आबय लागल.

अहाँक जीवनी सेहो एहिबेर साहित्य अकादमी पुरस्कारक हेतु नामित अछि. पुरस्कार भेटत ताहि लेल कतेक आश्वस्त छी? की ई अपनेक सर्वश्रेष्ठ रचनाअछि ? ककरो जीवनीपर अकादमी पुरस्कारक भेटबाक की औचित्य छैक?
अहाँ पुछ्लहुं हमरा अपन कोन कृति सब सं नीक लगैत अछि ? कोनो माय सं पूछल जाय, अहाँक कोन संतान सब सं बेसी नीक लगैत अछि त' साइद ओ जबाब नै द' सकतीह. हमर रचना हमर मानस -शिशु थीक. जतेक बेर अपने रचना पढैत छी, एकटा अनिर्वचनीय आनंदक अनुभूति होयत अछि. सृजनक सुख माइये जनैत अछि. जहिना प्रसव पीड़ा सं माय छटपट करैत अछि ओहिना रचनाक जन्म सं पहिने रचनाकार ..संतानक जन्मक उपरांत जेना माता कखनो ओकर माथ ठोकैत अछि, कखनो नाक पातर करैत अछि ओहिना रचनाकार मानस शिशु केर जन्मोपरांत ओकरा सुन्नर बनवा मे लागि जाइछ.
क़िस्त क़िस्त .. ...कथा छी एकटा अति भावुकमना साधारण लड़कीक, जे शहरक वैभव विलासक मध्य जन्म लैत कोना ग्रामीण परिवेश मे, जीवनक बाट मे अपन सहनशीलताक चरम पर पारिवारिक, सामाजिक ,पारंपरिक दायित्वक निर्वाह करैत रहलीह, कोना मैथिली साहित्यक देहरियो धरि पहुँचलीह .. जहिना पृथ्वी मे तीन हिस्सा जलक आ एक हिस्सा धरतीक  रहैत छैक ओहिना हमर तन मन मे तीन हिस्सा कल्पना -संवेदनाक अछि त' एक हिस्सा वास्तविकताक. किन्तु, एहि सब स' फराक हमर जिन्दगी COMPROMISE आ  ADJUSTMENT क' रहल. हम चाहैत छलहुं हमर जिनगी सं आजुक युवा खास क' कन्या वर्ग किछ ते सिखैत, आ दृढ प्रतिज्ञ भ आगू बढ़त. स्त्री में आर्थिक स्वतंत्रता , सुरक्षा नै स्वरक्षा आ स्वयम निर्णय लेवाक क्षमता हेवाक चाही, एहि किताब लिखबाक इएह तात्पर्य अछि. मुदा, हमर इच्छा पूर्ण नै भेल. खूब  बिकायल, आब दोसरो संस्करण निकलवा लेल आग्रह भ' रहल अछि, मुदा हम जे चाहलहुं से पूरा नै भेल. हं श्रीमति शैल झा केर एकटा पत्र अचक्के हमरा भेटल ..आ हमरा लागल जे हमर पोथी अपन सम्पूर्णता पाबि गेल. दिल्ली विश्व विद्यालय सं आग्रह भेल जे एकर हिंदी अनुवाद करू, प्रत्येक लड़का -लड़की कें पढ़वाक चाही. कोशिश मे छी. हिंदी मे क' रहल छी. किन्तु एहि पोथीक प्रकाशन लेल  हम पंचानन मिश्र आ शरदिंदु चौधरी जी केर आभारी छी जे जबरदस्ती हमरा सं पाण्डुलिपिक समापन करौलथि. बर्नार्ड शॉ कहने छथि 'दुनियाक सभ व्यक्ति अपन-अपन जिनगी लिखय लागथि त' विश्व मे सुन्दर उपन्यासक कोनो कमी नै रहत.

नवलेखनमे पहिने सँ भाषिक, भावक आ' तकनीक आधारपर कतेक अंतर देखैत छी ?
नवलेखन एखन एकटा तीव्र प्रवाह जकां मैथिली साहित्य मे क्रांति आनि देने अछि. कारण जे वैचारिक आ वैज्ञानिक क्रांतिक युग छी. कोनो प्रकाशक, सम्पादक केर खुशामद नै. युवा वर्ग लिखैत छथि आ खूब लिखैत छथि। नव नव गति विधि, ओकर प्रकार, आ' उत्साहितो खूब छथि. हुनका सब कें उत्साहित केनाइ हमर सभक पुनीत कर्तव्य भ' जाइत अछि. मैथिलीक भविष्य हुनके सभक हाथ मे सुरक्षित अछि. मोन पडैत अछि, हम 84 मे साहित्य अकादेमी केर पुर्वान्चलीय पोएट्स वर्कशॉपक पञ्च दिवसीय कार्यक्रममे कलकत्ता गेल छलहुं. ओहिठाम उड़ियाक कवि राजेंद्र पंडा, हरी प्रछन, प्रतिभा सत्पथी , असामीक नव कान्त बरुआ, बाबु सिंह, हिरेन भट्टाचार्य, मणिपुरीक इबोमेहाँ सिंह, इबोमेहा पिसाक बंगला सं  नवनीता , भास्कर चक्रवर्ती आदि सब छलाह. उद्घाटन मे महाश्वेता देवीक ओजस्वी भाषण, उमाकांत जोशी, प्रभाकर माचवे सब छल. दुइ बात परिलक्षित केलहुं  हम पहिल जे सब बंगाली सभस खाली बंगला मे गप करैत छलाह. बाकि सब अंग्रेजी मे...हिंदी त' निर्वासित सीता छलीह, मैथिलीक कोन कथा....मुदा हम मणिपुरी, ओरिया असामी सब स' मैथिली मे गप करैत रहलहुं. अप्पन भाषा क आनंद ...दोसर गप--प्रभाकर माचवे हमरा कहलनि. शेफालिका जी , आय बंगला भाषा विश्वक समृद्ध भाषा मे स' एक जानल जाइत छैक, तकर कारण जे बंगला मे नव पुरान सब लेखक कें मंच भेटैत छैक किन्तु अहाँक मैथिली मे जे छथि सैह छथि — कतेक सटीक गप ?? किन्तु आइ तकनिकी विकासक कारण मैथिली सम्पूर्ण विश्व कें जोडि लेलक. नवलेखन हमरा जनैत भाषा भाव सब दृष्टिये उत्कृष्ट अछि.

अपनेक दृष्टिमे साहित्य-लेखनक चरम उद्देश्य की हेबाक चाही ?
आजुक युगे तनावक युग थीक. पूर्ववर्त्ती मानवक अपेक्षा आइ मानवक संघर्ष बेसी प्रखर अछि. पहिने मानव प्रकृति स' संघर्ष करैत छल पुनः मानव मानवक संग आब एहि सभक अतिरिक्त मानव कें स्वयम अपना-आप स' संघर्ष करय पडैत छैक. एहनामे जाहि साहित्य मे सत्य, शिव आ सुन्दरक समावेश रहत, जे साहित्य मनुख कें मनुख स' जोडैत छैक सैह असली साहित्य छी. मानव कल्याणे साहित्यक चरम उद्देश्य हो.

मैथिली आलोचककेँ समालोचनाक अवगति नहि छनि  वा लेखकमे आलोचना सहबाक समर्थ्यक कमी छैक ?
अरस्तु, प्लेटो आदिक आलोचना सिद्धांत हमहूँ आचार्य नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार सं पढने छलहुं. वस्तुतः कोनो साहित्य कें बुझबा लेल तर्क-वितर्क, संशय-असंशय नहि वरन हृदयक संवेदनशीलता, सह्संवेद्यता हेबाक चाही. तखने कोनो रचनाक आत्माधरि पहुंचि ओकर गुण अवगुण कें उजागर कयल जा सकैछ .कृतिक आलोचना हेवाक चाही, कृतिकारक नै, आलोचककेँ पूर्वाग्रह सं ग्रसित नै हेबाक चाही. तखन हमरा सभक व्यक्तित्व आ' कृतित्वमे सेहो तारतम्यता हेबाक चाही.किएक तऽ यदि अहाँ कोनो आदर्श वाक्य लिखैत छी तऽ पाठकक अपेक्षा रहैत छन्हि जे ओहि आदर्शक अहाँ सेहो किछु अनुसरण करी.

अहाँ मैथिली साहित्यकेँ कोन दिशामे जाइत देखैत छी ?
एकटा आलोक-लोक दिस जायत.. यदि समुचित सहयोग सब कें भेटय. वैज्ञानिक आ' वैचारिक क्रांतिक कारण आइ समस्त विश्व एकटा गाम बनि गेल अछि. मैथिल, मिथिला, मैथिली सब उजागर भ' रहल अछि.

मैथिली साहित्यमे राजनीति कतेक घोसिआयल छैक ?
लेखक-कलाकार कें उदार आ' वैश्विक दृष्टिकोण रखबाक चाही. समस्त पृथ्वी कुटुंब छथि. यदि ओ राजनीतीक प्रभाव सं मुक्त रहथि त' भारते नहि अपितु समस्त विश्व मे एकटा जबरदस्त नैतिक शक्ति केर निर्माण क' सकैत छथि. कलाकारक ह्रदय मे चैतन्यक जे स्फ्फुलिंग जरैत अछि ओ समस्त ब्रह्माण्डक मूल मे जे विराट चैतन्य ज्योति अछि ओकर अंश मात्र थीक. अंत मे हम एतबे कहब ...हमरा नव आ पुरान लेखक आ पाठकक अमित स्नेह आ आदर भेटल.

अंतमे नवतुरियाक लेल कोनो सनेस ?
युवा वर्ग सं हमर प्रार्थना जे लिखथि आ खूब लिखथि, सहनशीलता आ धैर्य राखथि, कोनो कृतिक आदर समय करैत छैक. वेदना प्रतिभाक प्राण थीक, संघर्ष जतवा तीव्र वेदना ओतवे प्रखर ..कुमार सम्भवम लिखि कालीदास कें जे अपमानक सामना करय पड़लनि त' मालविकाग्नि मित्र मे वैह लिखलनि जे पुरान कहैत अछि वैह नीक ....जे विद्वान छथि ओ कोनो वस्तुक नीक आ बेजाय पर लिखैत छथि. वाल्मीकि, व्यास, होमर, दांते, शेक्सपीयर, तुलसी, सुर सब कें आलोचनाक सामना करय पड़लनि. किन्तु लिखवाक संग संग पढ़वाक हिस्सक सेहो राखी, अप्पन भाषाक संग आनो आनो भाषाक आनंद आओत ..सब स' पैघ बात जे ' विद्या ददाति विनयम' कें अपना जीवन मे चरितार्थ करथि. अहीं सब कें देखि हम मैथिलीक स्वर्णिम भविष्य लेल आश्वस्त छी.
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