दायित्वबोधक संग आगाँ बढ़य युवा: धीरेन्द्र प्रेमर्षि


बहुआयामी प्रतिभाक धनी धीरेन्द्र प्रेमर्षि सँ चंदन कुमार झा द्वारा लेल गेल ऑनलाइन साक्षात्कारक मुख्य अंशः

अहाँ नेपाल मे विभिन्न रेडियो आ टेलिविजन कार्यक्रम सँ जुड़ल छी. नेपालक मैथिली पत्रकारिताक वर्तमान स्थितिक संबंध मे किछु जानकारी दिअ'. एकर भविष्यक मादेँ सेहो कहू?
नेपाल मे मैथिली पत्रकारिताक फलक एखन बेस विस्तृत भेल छैक. एहि मे एमहर आबि बहुतो गोटे जुड़ि गेल छथि. कतेको गोटे केँ रोजीरोटीक प्रमुख आधार सेहो मैथिली भाषा सँ सम्बन्धित रेडियो, टेलिभिजन एवं पत्रपत्रिका भऽ गेल छैक. खास कऽ मिथिलाक हरेक शहर-बजार मे एफएम रेडियोसभक स्थापना आ तकर प्रसारणक भाषा मैथिली भेला सँ प्रयोगक हिसाबेँ नेपालक सम्पूर्ण मिथिला मैथिलीमय बुझाइत छैक. एहि आधार पर  मैथिली कमोवेश रोजगारीक भाषा सेहो बनि गेल अछि. मुदा समग्र मे जँ देखल जाए तँ 'नाक तँ सोन नहि आ सोन तँ नाक नहि' वला अवस्था छैक. जहिया मैथिल युवासभ मे अपन भाषा-संस्कृतिक लेल बहुत किछु करबाक उत्साह देखल जाइत छलैक तहिया किछु करबाक जगहे नहि छलैक, आब जखन कि जगह सभ बनलैक अछि तँ ओ उत्साह नहि देखल जा रहल छैक. अधिकांश सन्दर्भ मे मैथिली मात्र पेट भरबाक जरिया बनिकऽ रहि गेल सन बुझाइत अछि. पहिने अधिकांश मैथिल 'मैथिली'क लेल पत्रकारिता, साहित्य, सङ्गीत, मैथिली पठन-पाठन सन क्षेत्र सँ जुड़ल रहैत छलाह, एखन एहि क्षेत्रसभक माध्यमेँ मूल धार मे प्रवेश करबाक लेल मैथिलीक प्रयोगटा कएल जा रहल छैक. मुदा चाहे कोनो बहन्ने हो- मैथिली सँ लोकक जुड़ाव बढ़ि रहल छैक. एहि सँ जुड़ैत गेला पर एकरा सङ्गे लोकक आत्मिक जुड़ाव सेहो बढ़बे करतैक. तेँ मैथिलीक भविष्य हम उज्ज्वल देखैत छी.  

अहाँ मैथिली साहित्यकारक रूप मे सेहो बेस प्रतिष्ठित छी. अपन साहित्यिक यात्राक संबंध मे किछु जानकारी दिअ'?
हमरा गायक बनबाक लौल साहित्यकार बनौलक. गायन आ अभिनय मे रूचि आ दखल रहए. मैट्रिकक पढाइ धरि जाबत गाम (बस्तीपुर-गोविन्दपुर, सिरहा, नेपाल) पर रही, ताबत हम बड्ड लजकोटर रही. कारण जे गायन आ अभिनय क्षेत्रक एक सँ एक धुरन्धर आ विद्वान सभ गाम मे रहथि. हुनकासभक आगाँ हम अपना केँ बहुत कमजोर पबैत रही. मुदा जखन कृषि मे इन्टरमीडिएट करबाक लेल हम यूपीक शोहरतगढ़ पहुँचलहुँ तँ सङ्गीसभक बीच आ कालेज मे गायकक रूप मे लोकप्रिय भऽ गेलहुँ. अठारहे वर्षक उम्र मे हम सरकारी नोकरी सेहो धऽ लेलहुँ, जाहि मे हमर पोष्टिङ नेपालक अति दुर्गम स्थान हुम्ला कऽ देल गेल. ओहूठाम हमर गायकीक नीक प्रशंसा होबऽ लागल. तहिया हम मूलतः हिन्दी आ नेपाली गीतसभ गबैत रही. मैथिली प्रति कोनो आकर्षण नहि रहए. मुदा हम मैथिल छी आ मैथिली हमर भाषा अछि से चेतना भरिसक कतहु नीके जकाँ जड़ि गाड़ने छल. ई बात हमर सङ्गीयोसाथी सभ जनैत छल. से एक दिन एकटा सङ्गी कहलक जे तोँ रेडियो नेपाल मे जा कऽ किए गीत नइ रेकर्ड करबै छेँ, ओइ मे तँ तोहर मातृभाषा मैथिलीयो मे गीत दै छै आ गीत गाबऽ अएबाक लेल आह्वानो करै छै! एतबा जानकारी भेटलाक बाद ओही मित्रक सङ्ग रेडियो नेपालक ओ फुलबारी कार्यक्रम सुनलहुँ जाहि मे विभिन्न भाषाक गीतक सङहि कोनो चौधरी द्वारा गाएल एकटा मैथिली गीत सेहो बाजल रहैक. ओकर बोल हमरा एखनो मोने अछि- भौजी यै, अहाँ किए रुसि गेलियै यै! हम ई गीत मे रहल आवाज आ अपन आवाज बीच मोनेमोन तुलना कएलहुँ. हमर मोन अहङ्कार देखौलक जे अइ सँ नीक तँ हमहीँ गाबि लेब. तकरा बाद हम गीत गएबाक लेल काठमाण्डू जएबाक योजना बनबऽ लगलहुँ. मुदा रेकर्ड करएबाक लेल कोनो नव गीत भेनाइ आवश्यक छलैक. हम जाहिठाम रही ताहिठाम ई सम्भव नहि छल. जँ गाम आबिकऽ नव गीतक तकतियान वा जोगाड़ करी तँ सेहो असम्भवे प्रायः छल. किएक तँ हमर दरमाहा रहए डेढ़ हजार टका आ एकबेर गाम जाए-आबऽ के किराया करीब दस हजार टका. तेँ सोचलहुँ जे अपने लिखबाक प्रयत्न करबाक चाही. गीत केहन हेबाक चाही से मार्गदर्शन हमरा चौधरीजीक गीत सुनिकऽ भेटिए गेल रहए. लगभग रेडियो मे सुनलाहा ओही गीत केँ गुरु मानि हम लिखबाक प्रयत्न कएलहुँ. लिखैत-लिखैत लिखा गेल- तोहर गगरी सँ पानी छिलकल जाइ. आइ जखन हम देखैत छी तँ एहि गीतक कोनोटा साहित्यिक मूल्य नहि छैक. मुदा हम लीखि सकैत छी से आत्मविश्वास हमरा उएह गीत देलक. बाद मे जखन हम बदली भऽकऽ हुम्ला सँ जनकपुर अएलहुँ तँ डा. धीरेन्द्र, महेन्द्र मलङ्गिया, योगेन्द्र साह 'नेपाली', डा. राजेन्द्र विमल, भुवनेश्वर पाथेय आदिक छाँह आ मार्गदर्शन भेटल. हमरा मोन पडैए वि.सं. २०४६ सालक मैथिली विकास दिवस, जकर आयोजन मिथिला नाट्यकला परिषद (मिनाप) प्रत्येक वर्ष करैत छल. ओहि मे कविगोष्ठीक संयोजक डा. धीरेन्द्र छलाह. हुनका लग कविता 3 दिन पहिने बुझा देल गेल छलैक. हमहुँ अपन कविता देने रहियैक. वाचन काल मे जखन कविता हाथ मे पड़ल तँ पूरा पन्ना लालोलाल छल. उएह ललका सुधारात्मक चिह्न सभ हमरा लेल मैथिली भाषा, साहित्य आ व्याकरणक गुरुमन्त्र बनि गेल. ओही आधार पर हम अपन लेखन केँ दिशा देबऽ लगलहुँ. हम अपन समकालीन मित्र सभ श्यामसुन्दर शशि, धर्मेन्द्र विह्वल, विपिनकुमार साह, रमेश रञ्जन, विनोदानन्द, सुनील मल्लिक आदिक सङ्ग परस्पर स्वच्छ प्रतिस्पर्धाक भावना सँ साहित्य-सृजन मे लागल रहलहुँ आ अग्रज साहित्यकार सभक अनवरत मार्गदर्शन पबैत रहलहुँ. जनकपुर हम एक वर्ष रहलहुँ. ई एक वर्ष हमर 'सभक' लगभग सर्वाधिक सक्रिय समय छल. मिनापक सेहो स्वयंसेवकीय गतिविधि एही समय मे सभ सँ बेसी भेल छलैक. हम सभ मैथिली सांस्कृतिक आ साहित्यिक कार्यक्रम केँ व्यापक बनएबाक सन्दर्भ मे जनकपुर क्षेत्रक गामगाम धाङि देने रहियैक.
एहीबीच हमर बदली पुनः काठमाण्डू भऽ गेल. हमरा बस स्टैण्ड धरि छोड़ऽ लेल कम सँ कम पचास गोटे आएल रहथि. विदा करैत काल मिनापक तत्कालीन अध्यक्ष योगेन्द्र साह 'नेपाली' जी कहलनि- धीरेन्द्रजी, अहाँ मैथिलीक राजदूत बनि कऽ काठमाण्डू जा रहल छी. काठमाण्डू अएलाक बाद घोर प्रतिकूल अवस्था मे सेहो हुनकर ओ वाक्य हमर कान मे गुञ्जैत रहैत छल आ हमरा मिथिला-मैथिली केँ आगाँ बढ़बैवला जे कोनो रस्ता नजर अबैत छल ओहि मे आगाँ बढ़ि जाइत रही. मैथिली केँ लऽकऽ आगाँ बढ़ैत रहबाक इएह उपक्रम हमर साहित्यिक यात्रा वा सृजन-यात्रा छी जे साहित्यक सङ्ग-सङ्ग सङ्गीत, अभिनय आ सञ्चार मे सेहो निरन्तर जारी अछि.



नेपाल मे मिथिला-मैथिली सँ जुड़ल गतिविधि सभ मे अहाँ सेहो सक्रिय रहैत छी से नेपाल मे पृथक मिथिला राज्यक अलावे आर कोन-कोन प्रमुख मुद्दा छैक जाहि पर आंदोलन भऽ रहल छैक?

पृथक मिथिला राज्य नेपालीय मिथिलाक मूल माङ छैक जकाँ हमरा नहि लगैत अछि. ई तँ जखन राज्यक पुनर्संरचनाक बात आबऽ लगलैक तखन नीकजकाँ उठल विषय छियैक. जखन अन्यान्य प्रान्त बनत तँ ऐतिहासिक, भाषिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, आर्थिक आदि सभ दृष्टिएँ नेपाल मे सभ सँ बेसी निजत्ववला मिथिला-मैथिलीक विषय कोना कात रहि सकैत अछि, से मात्र मिथिला राज्य आन्दोलनक मूल कारक छैक. मुदा मिथिलाक जे बनल-बनाएल आधार सभ छैक, तकरा अक्षुण्ण रखबाक लेल भाषिक-सांस्कृतिक पहिचान आ सम्मान एहिठामक मूल मुद्दा छैक. एहि क्रम मे शिक्षा, सञ्चारसन क्षेत्र मे एकरा व्यापक बनबैत जएबाक तथा आमजन मे मैथिलीक व्यवहार पर गौरव करबाक वातावरण बनल रहैक ताहि दिशा मे हमरासभक काज केन्द्रित रहैत अछि. एकरा लेल हम सभ साहित्य-सङ्गीत-सञ्चार आदि यावत सृजन-संयन्त्र केँ सिढ़ी बना क्रियाशील छी.
पछिला समय मे नेपाल मे मैथिली केँ ओछ देखएबाक लेल राज्य पक्ष आ बिकौआ सभ द्वारा विभिन्न कुचक्र सभ शुरू भऽ गेल छैक. एतबा दिन तँ खालि हिन्दी सँ एकरा झँपबाक प्रयत्न कएल जाइत छलैक मुदा आब तँ गङ्गापारक भाषा मगही केँ पर्यन्त एक्के बेर बनरछड़पी करबाकऽ विभिन्न नाम पर स्थापित करबाक प्रयत्न भऽ रहल छैक. सङहि मैथिलीक नाम पर सर्वाधिक सरकारी अवसर प्राप्त कएनिहार कतेको व्यक्ति सेहो समय-समय पर जातिक नाम पर मैथिलीक घेँट रेतबा सँ नहि चुकैत छथि. एहि सभ लुचपनी केँ नाङट करबा दिस सेहो हमरा सभक अभियान चलैत रहल अछि. 

नेपाल मे मैथिली सिनेमा आ' संगीत जगत भारतक मिथिलाक अपेक्षा बेसी सक्रिय बुझाइत अछि. एकटा कलाकारक रूप मे अहाँ एकरा कतेक गुणवत्तापूर्ण देखैत छी?
भारतक अपेक्षा नेपाल मे सिनेमा आ सङ्गीत मे सक्रियता देखाइतटा छैक, मुदा असल मे अवस्था से नहि छैक. सक्रियता बेसी ओही पार छैक. जँ मैथिली मे सिनेमाक बात करब तँ एखन धरि दुनू पार लौल मात्र पूरा कएल जा रहल छैक. साधना वा सृजनाक प्रतिरूप हमरा एखनधरिक कोनोटा मैथिली फिल्म मे देखबा मे नहि आएल अछि. मुरलीधर निर्देशित 'सस्ता जिनगी महग सेनुर' आ 'साजनके अङ्गना मे सोलह सिङ्गार' सहित किछु फिल्म सीमित स्रोत-साधन मे कएल गेल इमानदार प्रयास अछि.
जँ अहाँ नेपालक सक्रियता देखैत छी तँ ओकर कारण छैक नेपाल मे मैथिली दोसर सभ सँ पैघ जनसमूहक भाषा हएब. एहि कारणेँ नेपाल टेलिभिजन मे प्रजातन्त्रक पुनर्स्थापनाक बादहि सँ एकाधटाकऽ टेलिफिल्म प्रसारण होबऽ लगलैक. धीरे धीरे नेपाल मे कैमरा आदि फिल्म निर्माणक उपकरण अपेक्षाकृत सस्ता भेटऽ लगलैक. बहुतो गोटे एहू माध्यम सँ हीरो बनबाक लौल पूरा करऽ लगलाह. विशुद्ध फिल्म निर्माणक हिसाबेँ बहुत कम फिल्म बनल छैक. भारत दिस जेँ कि एहनो नहि बनि रहल छैक तेँ नेपालदिसक सक्रियता उल्लेख्य बुझाइत छैक. असल मे मैथिली फिल्म बनौनिहार केँ सोचबाक चाही जे मुम्बइया मसल्लावला फिल्म मैथिलो दर्शक केँ बहुत सहजतापूर्वक उत्कृष्ट रूपमे भेटि जाइत छैक. एहन मे लोक मैथिलीक नाम पर ओकरे घसल-पिटल नकल किएक देखत?
सङ्गीतो मे किछु एहने सन अवस्था छैक. मुदा नेपाल मे सङ्गीत कम्मो सृजन होइत मौलिकता आ सृजनशीलता पर बेसी ध्यान देल जाइत छैक. खास कऽ मिथिला नाट्यकला परिषद सँ जखन हम जुड़लहुँ तँ पहिनहि सँ सङ्गीत मे सक्रिय सुनील मल्लिक आ हमरा बीच एक तरहक प्रतिस्पर्धा जकाँ चलि पड़ल. ई प्रतिस्पर्धा सङ्गीत-सृजन मे छल. हम सभ नव-नव उद्देश्यमूलक गीत सभ जुटाबी आ प्रत्येक कार्यक्रम मे प्रयत्न करी जे नव आ मौलिक गीत गाबिकऽ एक-दोसरा सँ आगाँ निकली. एहि सँ हमसभ काफी गीतक सङ्गीत करैत चलि गेलहुँ. हिन्दी गीतक पैरोड़ी केँ हमसभ पूर्णतः बहिष्कार कऽ देलियैक. बाद मे जखन हम 'हेल्लो मिथिला' चलबऽ लगलहुँ, ताहू मे मौलिक आ सृजनशील मैथिली सङ्गीतक प्रयोग आ प्रवर्द्धन पर जोड़ दैत रहलियैक. हम आ सुनील–प्रवेश एहि तरहक सङ्गीतक सृजन मे सेहो सक्रिय रहलहुँ. एकर प्रभाव नेपालक परवर्ती सङ्गीतकारसभ मे सेहो पड़लैक. फलस्वरूप मात्र अपन रचनाशीलताक कारण नेपालक सङ्गीत बेसी सक्रिय बुझाइत छैक. भारत दिस प्रतिभाक शिखर व्यक्तित्व सभ रहितो हुनका लोकनि मे एहि तरहक प्रतिबद्धताक अभावक कारण ओहि विशाल क्षेत्रक मैथिली सङ्गीत सेहो अपेक्षित रूपेँ लाभान्वित नहि भऽ पाएल अछि आ समग्र मे झूस बुझाइत अछि.



रूपा जी सेहो मैथिली गतिविधि मे सक्रिय रहैत छथि, गायिका छथि, हेल्लो मिथिला मे सेहो अहाँक संग पूरै छथि, फेर एतेक व्यस्तता के बावजूद गृहस्थी मे सामंजस्य कोना बैसबैत छियैक?

हमरा जनैत ई प्रश्न रूपाजी सँ पूछल जएबाक चाही. एकर जवाब जँ हम देब तँ ओहने अनसोहाँत लागत जेना कोनो दलित संस्थाक प्रवक्ता बाभन बनि जाए. तथापि बात जखन उठि गेल अछि तँ अपना भर सँ हम एतबए कहब जे हमर तँ आधा गृहस्थीए मैथिली आ सृजन कर्म छी. एहि मे रूपाक जे संलग्नता छनि से हमरा सभक गृहस्थीक यात्रा केँ आओर सहज आ सहयोगात्मक बना देलक अछि.

हम अनुभव करैत छी जे "हेल्लो मिथिला" मैथिली पत्रकारिता आ' रेडियो पर मैथिली कार्यक्रमक नव आयाम देलकै से भारत आ नेपाल दुनू जगह.एहि पर अहाँक की कहब अछि?
हमरा लगैत अछि जे ई बात अहाँ सभ सन सचेत मैथिली अभियानी नीक जकाँ देखि आ जानि रहल छी. हँ, एतबा हमरो बुझाइत अछि जे मैथिली सेहो समग्र मिथिला केँ सम्बोधन करबाक माध्यम भऽ सकैत छैक, मैथिली सेहो व्यापार-व्यवसायक माध्यम भऽ सकैत अछि; तकरा प्रमाणित करबा मे 'हेल्लो मिथिला' सफल रहल. प्रायः ताही कारणेँ 'हेल्लो मिथिला' क सफलताक बाद नेपाल दिस मिथिलाक प्रत्येक शहर मे अध-अध दर्जनक सङ्ख्या मे एफएम रेडियो सभ खुजऽ लागल आ ओ सभ अपन मुख्य भाषा मैथिली केँ बनौलक. ओहि सँ पहिने जँ मिथिला मे एफएम रेडियो सभ स्थापना भेल रहितैक तँ ओकर भाषा नेपाली रहितैक से निश्चित अछि. तकर प्रमाणक रूप मे जनकपुरक पत्रकारिता केँ लऽ सकैत छी. ओहि ठाम पहिने जे-जतेक पत्रिका वा अखबार बहराइत छलैक, सभक भाषा नेपाली छलैक. एहि तरहेँ कहि सकैत छी जे 'हेल्लो मिथिला' मिथिलावासी केँ अप्पन बात अप्पन भाषा मे कहबाक हिम्मत देलकैक. आइ हजारोक सङ्ख्या मे मैथिल युवा मैथिली मे बाजि-भूकिकऽ तथा तत्सम्बन्धी अन्य कार्य सँ रोजगारी एवं सम्मान पाबि रहल अछि. तहिना नेपाल आ भारत मिलाकऽ कम सँ कम आधा दर्जन आर्केष्ट्रा खूजि गेल 'हेल्लो मिथिला' नाम सँ. एहि तरहेँ 'हेल्लो मिथिला' फैलावटक दृष्टिएँ निश्चिते मैथिली पत्रकारिता आ कार्यक्रम केँ नव आयाम देलकैक. हँ, मिथिलाक माटिपानि केँ लऽकऽ ओकरा निरन्तर प्रतिष्ठित करबैत जएबाक अभियान एहि नव आयाम मे जुड़ब बाँकी छैक. एखन मैथिलीक डाढ़ि सभ जतऽ खसल, सभ मे पात पनुघल छैक. आशा अछि, धीरे धीरे ओहि सँ जड़ि सेहो बहराइत जेतैक.

अहाँ अपनो मानैत छी जे डॉ. धीरेन्द्रक व्यक्तित्व आ' साहित्य दुनू सँ अहाँ प्रभावित छी. डॉ. धीरेन्द्र सँ जुड़ल कोनो संस्मरण जे हमर पाठक सभक संग साझी करय चाहब?
डाक्टर धीरेन्द्र शुरू मे हमरा पर खास ध्यान नहि देथि वा कही जे हमरा कोनो जोगरक नहि बूझथि. एकर कारण हमरा बुझाइत अछि जे ओ मैथिली केँ आगाँ बढ़एबाक सन्दर्भ मे ब्राह्मणेतर जाति केँ बेसी महत्त्व दैत छलाह. हमरा विषय मे हुनक इएह धारणा रहल हेतनि जे एकटा आओर बाभन आबि गेल. मुदा बाद मे जखन हमर गतिविधि आ विचार सँ अवगत होइत गेलाह तँ हमरा प्रति हुनक स्नेह बढ़ैत गेलनि.
हमरा अपन विवाहक समय मे डा. धीरेन्द्रक उत्साहित नजरि कहियो नहि बिसराइत अछि. हमर विवाहक एकटा प्रमुख खण्ड जनकपुरक जानकी मन्दिर मे स्वयंवरक रूप मे सम्पन्न भेल छल. एकर कारण कहऽ लागब तँ नमहर भऽ जाएत. एतबए कही जे दहेज विरोधी विवाह केँ प्रोत्साहन करबाक एकटा उपक्रम छल ई. हमर एहि फैसला पर बहुतो गोटे खास प्रसन्न नहि रहथि. विवाहक सरञ्जाम मे हम अपने हनुमाननगर सँ जनकपुर धरि डेढ़ सय किलोमीटरक दौड़बड़हा मे लागल रही. स्वयंवरक लेल हम अपन शुभचिन्तकसभ केँ साते बजे जानकी मन्दिर बजौने रहियनि. हनुमाननगर सँ जनकपुर अबैत बस मे विलम्ब भेने हम अपने पहुँचलहुँ साढे आठ बजे. डा. धीरेन्द्र बीमार छलाह. तैयो अपन धर्मपत्नीक सङ्ग राति दश बजे धरि जानकी मन्दिर अगोरने बैसल छलाह. बड़ हर्षक सङ्ग हमरासभक स्वयंवर मे दुनू परानी सम्मिलित भऽ आशीर्वाद देलनि. रूपा केँ अपन समस्त प्रकाशित पोथीक एक सेट उपहार देलखिन. हमरा लगैत अछि- रूपाक साहित्य दिस प्रवृत्त होएबाक एकटा प्रमुख आधार ओहू सँ तैयार भेल छल.



नेपाली मैथिलक भारतीय मिथिला-मैथिलीक वर्तमान दशा ओ' दिशा पर केहन दृष्टिकोण अहाँ अनुभव करैत छी?

भारत मे मैथिलीक लेल अत्यन्त अनकूल आ सहयोगात्मक वातावरण रहितहुँ जतबा काज होएबाक चाही से नहि भऽ पाबि रहल छैक. भारत दिस मैथिलीयो मे काज कऽकऽ लोक कमाइयो-धमा लैत छथि, मुदा नेपाल मे हमसभ एतबा दिन धरि बालु पेरि-पेरि कऽ कने मने तेल बाहर भऽ सकबाक अवस्था बनएबा मे सफल भेल छी. मुदा ओमहर सुनबा मे अबैत अछि जे अष्टम अनुसूचि सँ अनेक सुविधा छैक तथापि काज यथेष्ट नहि भऽ पाबि रहल अछि. बेसी गोटे एहन देखल जाइत छथि जे मैथिली केँ हिन्दी साहित्य मे प्रवेश पएबाक माध्यमटा बना रहल छथि. मैथिलीए मे समर्पित भऽकऽ काज कएला पर हिन्दी वा आन साहित्य-समाज अपनहि 'रेड कार्पेट' ओछा कऽ स्वागत करत से विश्वास लोकक काज मे खास नहि देखाइत अछि.
एकटा बात बड़ उत्साहित करैत अछि जे टेक्नोलोजीक प्रयोग मे आब भारतीय मिथिला क्षेत्र बेस सक्रिय भऽ गेल अछि. पाँच–छओ वर्ष पहिने जखन हम अपन भारतीय मित्रसभ सँ इमेल पता मङै छलियनि तँ अधिकांश गोटे मूह बाबि दैत छलाह. मुदा आब देखैत छी जे प्रायः सभ इमेल, फेसबुक आदिक अभ्यस्त भऽ गेल छथि. एहि माध्यमेँ साहित्य-सञ्चारमे सेहो महत्त्वपूर्ण काज भऽ रहल छैक. मुदा सम्पादन मे गम्भीरताक अभाव आ राँड़ी-बेटखौकी शैली मे होइत गारि-गरौअलि मोन केँ अम्मत कऽ दैत अछि. आ सभ सँ  भारतीय मिथिलाक सृजन संसार सरसजीक गजलक तर्जपर "अपने मे शहंशाह रहैत अछि, ठोकि पीठ अपने वाहवाह कहैत अछि". नेपाल वा विश्वक आन ठामक मैथिली साहित्य दऽ ढङ्ग सँ खोजीयो-पुछारीक जरूरति महसूस नहि करैत अछि, जे कि समग्र मे मैथिली केँ क्षति कऽ रहल छैक.

नेपालक मैथिली रंगमंचक विषय मे किछु जानकारी दिअ'?
ई कहब अतिशयोक्ति नहि हएत जे नेपालक जतेक ठाम आब रङ्गमञ्चीय गतिविधि रहि गेलैए ताहि सभठाम आब नाटक मैथिलीए मे होइत छैक. हँ, ई अवश्य छैक जे समग्र गामठाम मे भेनिहार नाट्य गतिविधिए ठमकि गेलैए. तथापि विराटनगर, राजविराज, सिरहा, लहान आदि क्षेत्र मे छिटफुट रूपेँ मैथिली रङ्गमञ्चीय गतिविधि होइत रहबाक खबरि सभ अबैत रहैत अछि. मुदा एहिसभ मे कोनो स्पष्ट दिशाबोध आ प्रतिबद्धताक सर्वथा अभाव पाओल जाइत अछि.
जनकपुर क्षेत्र मैथिली रङ्गमञ्चीय दृष्टिसँ सौँसे मिथिला मे सर्वाधिक सक्रिय रहल बात जगजियार अछि. मिथिला नाट्यकला परिषद एहि मे परम्परा, प्रयोग, प्रसिद्धि सभ दृष्टिएँ सर्वाधिक उल्लेख्य नाम अछि. सङ्ग लागल युवा नाट्यकला परिषद परवाहा, आकृति, प्रतिबिम्ब, रामानन्द युवा क्लव आदि संस्था सेहो रङ्गमञ्च मे सक्रिय अछि. मुदा दुर्भाग्यक बात ई अछि जे मिनापसन संस्था सेहो वर्तमान मे पूर्ण सृजनशील यात्रा मे नहि भऽ मात्र महेन्द्र मलङ्गियाक नाटकसभक व्याज पर खेपि रहल अछि. एकर सुदीर्घ-समुन्नत इतिहास आ विस्तृत फलक देखि अपेक्षा सहजहिँ बेसी भऽ जाइत अछि. मुदा से नहि भऽ पाबि रहल छैक. ताहू सँ चिन्ताक बात ई अछि जे रङ्गमञ्च एखन सड़क आ चौबटिया बनि गेल अछि जे मात्र कोनो प्रायोजकक चेक सँ भजैत आ चलैत अछि. एतबा होइतहुँ ई कहब जे प्रतिभासभ नेपाल मे बहुत छथि, जिनक प्रमुख प्रतिबद्धता सृजनशीलता भऽ जाए तँ मैथिली रङ्गमञ्च जगमगा उठतैक. 



नेपालक मैथिल युवाक बीच मिथिला-मैथिली आंदोलन आ' आन-आन गतिविधिक प्रति कतेक उत्साह देखैत छी?

एहि प्रश्नक जवाब किछु अंश मे उपरो आबि चुकल अछि. एखन नेपालक अधिकांश मैथिल सभ मिथिला-मैथिली आ अन्यान्य रचनात्मक गतिविधि सँ बेसी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा सिद्धि दिस उत्साह देखबैत पाओल जाइत छथि. सृजनशील क्षेत्र मे सेहो आब पुनः किछु रुझान बढ़लैक अछि. मुदा 'खुर्पी छुआ बोनि हुआ' वला मनोवृत्ति किछु बेसी हाबी छैक. सफलताक चोटी एक्केबेर मे युवासभ देखि लैत छथि, चोटी धरि पहुँचऽ वला बाटक चढ़ान, विकटता आ धैर्य दिस ध्यान देबाक काज कने कम करैत छथि. बाबा यात्री कतौ कहने रहथिन जे जखन पीढ़ा (पिड़ही) घसाइत अछि तखन पीढ़ी बनैत अछि, मुदा युवासभ मे पीढ़ा-रूप केँ नव पीढ़ी मानि लेबाक अगुताहटि बेसी छैक. हमरा विश्वास अछि जे जखन ई सभ पीढ़ा बनि रहल छथि तँ एकर प्रयोगो हेबे करतैक आ तखन ई घसाइत-घसाइत पीढ़ी सेहो बनबे करतैक.

अहाँ दुनू पार मिथिला मे मैथिल युवावर्गक बीच आदर्शक रूप मे मानल जाइत छी. किछु कहऽ चाहबनि हुनका सभ कें?
हम जहिया धरि नाम-दाम वा प्रसिद्धिक लेल काज करैत छलहुँ तहिया धरि माटियोटा सँ नहि जुड़ि पओलहुँ. मुदा जहिया सँ माटिक धुन सवार भेल, नाम-दाम सभ भेटैत चलि गेल. माटिपानि मे जीवनदायी शक्ति रहल वैज्ञानिक तथ्य सृजनात्मक जीवन मे सेहो लागू होइत हम पाबि रहल छी. तात्पर्य एतबए जे जँ हम सभ अपन धरातल केँ उठएबाक काज करब, अपन माटिपानिक प्रति दायित्वबोधक सङ्ग आगाँ बढ़ब तँ सफलता अवश्यम्भावी अछि. एहि सँ किछुओ अंश मे सही, हमरा सभक धरातल उठबे करत आ जखन हमरा सभक धरातल उठत तँ स्वाभाविक अछि जे तकरा सङ्गे ओकरा उठौनिहार हम सभ अपनहुँ उपर मूहेँ उठबेटा करब.
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