वर्तमान साहित्यकारक-कलाकारक दायित्व

प्राचीन समय मे देवालय आ' धार्मिक स्थलक निर्माण केँ मूल उद्देश्य रहैत छलैक जे ओहिठाम सँ समाज केँ
नियंत्रित कयल जेतैक आ' लोक मे सामाजिकता, परोपकारिकता आ आपसी सामंजस्यक विस्तारक संगहि संग सांस्कृतिक आ' आर्थिक चेतनाक प्रचार-प्रसार कएल जेतैक.मुदा, कालांतर मे धार्मिक कट्टरता बढ़ैत गेलैक आ' उदारवादी सभ नव-नव बाट तकैत गेलाह.परिणाम भेलैक जे समाज फाँक-फाँक मे बँटैत गेल आ' फेर यैह सार्वजनिक सामाजिक-धार्मिक आयोजन सभ समाज मे वैमनस्यता आ' आपसी द्वेष कें प्रत्यक्ष आ' परोक्ष रुपेँ प्रश्रय देइत  चलि गेल जे एखन चरम पर पहुँचल अछि.आ'तइँ वर्तमान मे अधिकांश समय लगैत रहैत अछि जे सामाजिक संरचना केँ अस्तित्व विनाशक कनगी  पर पहुँच गेल अछि. नैतिकताक ह्रास आ' संकुचित सोच सँ संचालित राजनीति समाज कें तोड़बा मे सेहो कोनो कसरि नहि छोड़लक अछि. मुदा,एखनो यदि कतहु, कोनो सूत एहि टुटैत समाज के एकठाम बन्हबाक आ' थाम्हि केँ रखबाक लेल प्रयासरत अछि तऽ ओ छैक साहित्य आ' कला जकरा समाज केँ संग-संग अपन अस्तित्व सेहो बचेबाक लेल नित्य लड़य पड़ैत छैक. वर्तमान समय मे साहित्यकार आ' कलाकारक उत्तरदायित्व समाज निर्माणक ओहि आदिकालक धार्मिक उपदेशक आ' सामाजक दिक्दर्शक सँ बेसी बढ़ि गेल छैक. एखन समाजक पुनर्निर्माणक काल अछि. ओहि समय मे तऽ मात्र छिड़िआयल लोक के एक जगह अनबाक रहैक मुदा एखन तऽ भसिआयल लोक के एकठ्ठा करबाक छैक.संगहि अपन अस्तित्व आ' प्रतिष्ठा सेहो क्षीण नहि होइक तकरो चिन्ता बनले रहैत छैक.
— चंदन कुमार झा  
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